बिना गुरू के ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

Dharm
Spread the love

अमरीश


हरिद्वार, 22 दिसम्बर। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में स्वागत बैंकट हॉल आर्य नगर चैक ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि बिना गुरु के न तो ज्ञान की प्राप्ति होती है ना ही गति मिलती है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को जीवन में जिस से भी ज्ञान मिले उसे गुरु मान कर ज्ञान को ग्रहण कर लेना चाहिए। श्रीमद्भागवत महापुराण में दत्तात्रेय के 24 गुरुओं का वर्णन मिलता है। दत्तात्रेय ने जिससे भी कुछ ज्ञान लिया, उसे अपना गुरु मान लिया। दत्तात्रेय ने सर्वप्रथम पृथ्वी को गुरु मानकर सहनशीलता का ज्ञान लिया।

पृथ्वी के ऊपर मनुष्य अनेकों अनेकों प्रकार के पाप कर्म करता है। परंतु पृथ्वी मां की भांति सब कुछ सहन कर रही है। संत को भी सहनशील होना चाहिए। दत्तात्रेय ने आकाश को गुरु बनाकर आकाश से ज्ञान लिया कि आकाश बिना किसी के ऊपर भेदभाव किए सभी को अपनी छांव में रखता है। संत को भी किसी के ऊपर भेदभाव नहीं करना चाहिए। सभी को समान रूप से देखना चाहिए। मधुमक्खी को गुरु बना कर ज्ञान ग्रहण किया कि मधुमक्खी पुष्पों से थोड़ा-थोड़ा प्राग इकट्ठा करती है और शहद बनाती है। मधुहरता आता है और मधुमक्खियों को भगा कर सारा शहद ले जाता है।

संत एवं भक्तों को भी ज्यादा संग्रह नहीं करना चाहिए नहीं तो कोई ना कोई आकर सब कुछ छीन कर ले जाएगा और वही दुख का कारण बन जायेगा। कबूतर एवं कबूतरी को गुरु बनाकर दत्तात्रेय ने ज्ञान लिया एक शिकारी ने जाल बिछा रखा था। कबूतरी जाल में फंस गई कबूतर कबूतरी को बचाने के चक्कर में खुद भी जाल में फंस गया। कबूतर की कबूतरी के प्रति आसक्ति देख कर दत्तात्रेय ने ज्ञान लिया कि आसक्ति बंधन का कारण होता है। संत को किसी पर ज्यादा आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। ठीक इसी प्रकार से दत्तात्रेय ने कुंवारी कन्या, बृंगी नामक कीट, वैश्या, हाथी एवं जिस से भी कुछ ना कुछ सीखने को मिला उसे गुरु बना कर ज्ञान लिया और सबको संदेश दिया कि हम दूसरे की कमियों को देखते हैं। परंतु अच्छाइयों को नहीं देखते।

कमी अगर देखने चलो तो सबसे ज्यादा कमी अपने ही अंदर दिखाई देगी। इसलिए कमियां ना देख कर किसी के अंदर कोई एक अच्छाई है तो उस अच्छाई को ग्रहण कर लेना चाहिए। भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता का वर्णन करते हुए बताया कि मित्रता में कभी ऊंच-नीच, भेदभाव, छोटा बड़ा नहीं होता। इस अवसर पर समाजसेवी डा.विशाल गर्ग, समाजसेवी मनोज गौतम, कथा के मुख्य जजमान योगेश कौशिक, सुनीता कौशिक, अशोक कालिया, अमित कालिया, विश्वेश्वर दयाल शर्मा, सुधीर शर्मा, सुनील शर्मा, परमेश कौशिक, अविनेश कौशिक, समर्थ कौशिक, सुशांत कालिया, यामिनी कालिया, निशांत कौशिक, तुषार कौशिक, प्रशांत कौशिक ने भागवत पूजन किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *