श्री जगदीश आश्रम धर्म, संस्कृति की रक्षा व संस्कृत के उन्नयन को सदैव रहा है तत्पर : स्वामी योगेन्द्रानन्द

Dharm Haridwar News
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अरविंद


श्री जगदीश आश्रम निर्माण के 100 साल पूर्ण करने के उपलक्ष्य में किया गया विशाल यज्ञ व अन्न क्षेत्र का आयोजन
हरिद्वार, 30 सितम्बर। उत्तरी हरिद्वार की प्रख्यात धार्मिक संस्था श्री जगदीश आश्रम की स्थापना के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने पर आश्रम में विश्व शांति, लोक कल्याण व कोरोना से मुक्ति हेतु विशाल यज्ञ एवं अन्न क्षेत्र का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर श्री जगदीश आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी योगेन्द्रानन्द ने कहा कि पूज्य ब्रह्मलीन स्वामी जगदीश्वरानन्द जी महाराज ने वर्ष 1900 में श्री जगदीश आश्रम की स्थापना कर आचार्य गरीबदास जी की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने तथा भारतीय संस्कृति की रक्षा का कार्य किया। उन्हीं की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए उनके सुयोग्य शिष्य पं. स्वामी शम्भूदेव जी महाराज ने संस्कृत भाषा के संरक्षण व संवर्द्धन में ऐतिहासिक कार्य किया। अपने गुरूजनों की परम्परा का निर्वहन करते हुए डॉ. स्वामी शांतानन्द शास्त्री जी महाराज ने स्वामी शम्भूदेव संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में युवा पीढ़ी को संस्कृत व संस्कृति से जोड़ने का कार्य किया।
स्वामी योगेन्द्रानन्द शास्त्री जी महाराज ने कहा कि श्री जगदीश आश्रम सदैव धर्म प्रचार व लोक कल्याण के कार्यों में समर्पित रहेगा। भारतीय संस्कृति की रक्षा व राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण की भावना ही संस्था का मूल उद्देश्य है।
भाजपा पार्षद दल के उपनेता अनिरूद्ध भाटी ने कहा कि श्री जगदीश आश्रम व पं. शम्भूदेव संस्कृत महाविद्यालय देवभूमि की ऐतिहासिक धरोहर हैं। स्वामी जगदीश्वरानन्द जी द्वारा स्थापित यह संस्था निरन्तर धर्म, संस्कृति की रक्षा व मानव कल्याण को समर्पित है। संस्था के वर्तमान परमाध्यक्ष स्वामी योगेन्द्रनन्द शास्त्री जी महाराज अपने गुरूजनों की समृद्ध परम्परा को आगे बढ़ाते हुए निरन्तर धार्मिक, सामाजिक क्रियाकलापों व दरिद्र नारायण की सेवा को समर्पित हैं। निश्चित रूप से उनके नेतृत्व में संस्था युवा पीढ़ी को संस्कार व सेवा का संदेश दे रही
पं. रविश तिवारी व मुकेश पंत के आचार्यत्व में विद्वान विप्रजनों ने विधि-विधान से यज्ञ सम्पन्न करवाया तथा उसके पश्चात अन्न क्षेत्र का वितरण किया गया। इस अवसर पर संस्था के ट्रस्टीगण व गणमान्यजन उपस्थित रहे।

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