तनवीर
हरिद्वार, 23 अगस्त। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता ललित मिगलानी ने बताया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारतीय न्याय संहिता में नए अपराधों को शामिल किया गया है. जैसे- शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल तक की जेल.। नस्ल, जाति- समुदाय, लिंग के आधार पर मॉब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सज़ा। महिलाओं और बच्चों से संबंधित अपराध के फैसले अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 से 97 के तहत किए जाएंगे। मिगलानी ने बताया कि नए कानूनों के तहत रेप का दोषी पाए जाने पर 10 साल और गैंग रेप में 20 साल की सजा तथा जुर्माना और नाबालिक के साथ दुष्कर्म में फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है।
मैरिटल रेप का मुद्दा कई सालों से भारतीय न्यायिक परिचर्चा में एक विवादास्पद विषय रहा है. निर्भया रेप मामले के बाद जस्टिस वर्मा की कमेटी ने भी मैरिटल रेप के लिए अलग से कानून बनाने की सिफारिश की थी। उनकी दलील थी कि शादी के बाद सेक्स में भी सहमति और असहमति को परिभाषित करना चाहिए। भारतीय न्याय संहिता में मैरिटल रेप का जिक्र नहीं है। लेकिन नाबालिग पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना अपराध होगा. आपराधिक कानून मे शादी का झूठा वादा करके सेक्स को खासकर से अपराध की श्रेणी में डाला गया है।
. इसके लिए 10 साल तक की सजा होगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति शादी, रोजगार या छल करके महिला से यौन संबंध बनाता है तो ये अपराध होगा. इसके लिए दस साल तक की सजा बढ़ाई जा सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति पहचान छिपाकर शादी करता है तो उस पर भी दस साल तक की सजा का नियम लागू होगा। नए कानून में यौन उत्पीड़न जैसे अपराध को धारा 74 से 76 के तहत परिभाषित किया गया है और इसमें कोई खास बदलाव नहीं किया गया है। नए कानून में धारा 77 के मुताबिक महिला का पीछा करने, मना करने के बावजूद बात करने की कोशिश, ईमेल या किसी दूसरे इंटरनेट संचार पर नजर रखने जैसे अपराधों को इसमें परिभाषित किया गया है
जिसमें आईपीसी की तरह ही सज़ा का प्रावधान है यानी कोई बदलाव नहीं किया गया है.। शादीशुद महिला को फुसलाना भी अपराध माना गया है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 84 के तहत अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला को फुसलाकर, धमकाकर या उकसाकर अवैध संबंध के इरादे से ले जाता है को ये दंडनीय अपराध है. इसमें 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। भारतीय न्याय संहिता में धारा 79 में दहेज हत्या को परिभाषित किया गया है और सजा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। यानी जिस तरह की सजा की व्यवस्था आईपीसी में थी ठीक वही सजा का प्रावधान नई भारतीय न्याय संहिता में भी है। भारतीय न्याय संहिता में अडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है. अडल्ट्री को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को जिसमें अडल्ट्री के नियमों को बताया गया है उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मनमाना होने और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करने के कारण रद्द कर दिया था.
जांच-पड़ताल में अब फॉरेंसिक साक्ष्य जुटाने को अनिवार्य बनाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल, जैसे खोज और बरामदगी की रिकॉर्डिंग, सभी पूछताछ और सुनवाई ऑनलाइन मॉड में करना. इन बदलावों का कई विशेषज्ञों ने स्वागत भी किया है। हालाँकि, यह कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कैसे लागू किया जाता है। एफआईआर, जांच और सुनवाई के लिए अनिवार्य समय-सीमा तय की गई है। उदाहरण के लिए अब सुनवाई के 45 दिनों के भीतर फैसला देना होगा। शिकायत के 3 दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करनी होगी।