ब्यूरो
हरिद्वार, 5 जून। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट द्वारा शिवालिक नगर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि कर्मों के फलस्वरूप ही स्वर्ग, नरक और सुख दुख प्राप्त होता है। कर्म ही भाग्य का निर्धारण करते हैं। शास्त्री ने बताया कि बाणों की शैय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने जब भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें अपने सौ जन्मों का स्मरण है। उन्होंने कोई भी पाप कर्म नहीं किया। फिर मुझे यह बाणों की शैय्या क्यों मिली। तब श्रीकृष्ण ने कहा आपको सौ जन्मों का स्मरण है। लेकिन उससे पूर्व जन्म में आपने एक टीट्ठी नामक कीड़े को कांटा लगा कर झाड़ियों में फेंक दिया था। उसी के परिणामस्वरूप आज आपको बाणों की शैया प्राप्त हो रही है। यह आपका संचित कर्म है।
जो प्रारब्ध के रूप में आपको भोगना पड़ रहा है। मनुष्य के किए गए कर्म बिना फल दिए कभी समाप्त नहीं होते हैं। मनुष्य यदि दुख भोग रहा है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पाप कर्म नष्ट हो रहा है। यदि मनुष्य सुख भोगता है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पुण्य कर्म समाप्त हो रहा है। इसलिए मनुष्य को सदा सर्वदा सतकर्म करने चाहिए। शास्त्री ने श्रद्धालुओं को ध्रुव चरित्र, प्रहलाद चरित्र, गजेंद्र मोक्ष, वामन चरित्र एवं भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की कथा का श्रवण भी कराया। मुख्य यजमान किरण गुप्ता, अशोक गुप्ता, डा.अंशु गुप्ता, डा.राजकुमार गुप्ता, मिशिका गुप्ता, मिहिका गुप्ता, पंडित हेमंतकला, पंडित दयाकृष्ण शास्त्री, पंडित संजय शास्त्री ने भागवत पूजन किया।