राकेश वालिया
उच्चकोटि के विद्वान संत थे साकेतवासी स्वामी हंसदेवाचार्य-श्रीमहंत रविद्रपुरी
हरिद्वार, 28 फरवरी। साकेतवासी जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज की पांचवी पुण्यतिथी पर संत समाज ने उनका भावपूर्ण स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। भीमगोड़ा स्थित स्वामी जगन्नाथ धाम में महंत अरूण दास महाराज के संयोजन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि साकेतवासी जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज उच्चकोटि के विद्वान संत थे।
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण के लिए देश के समस्त संत समाज को एकजुट किया। पूर्व पालिकाध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी एवं स्वामी ऋषिश्वरानंद ने कहा कि साकेतवासी जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज संत समाज के प्रेरणास्रोत थे। उनके विचार और शिक्षाएं सदैव सभी को प्रेरणा देते रहेंगे। सभी को उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए मानव कल्याण में योगदान का संकल्प लेना चाहिए। महंत रूपेंद्र प्रकाश महाराज एवं गौ गंगा धाम सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी निर्मल दास महाराज ने कहा कि सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार में साकेतवासी स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज का योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।
महंत अरूणदास महाराज ने सभी संत महापुरूषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पूज्य गुरूदेव साकेतवासी जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज से प्राप्त शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए आश्रम की सेवा संस्कृति को आगे बढ़ाना ही उनके जीवन का उद्देश्य है। आश्रम के प्रबंधक जगदीश पांडे, ट्रस्टी हरभगवान खुराना, कृष्णगोपाल सेठी, श्याम कींगड़ा, पूर्व पार्षद अनिरूद्ध भाटी, सुनील अरोड़ा, समाजसेवी जगदीशलाल पाहवा ने सभी संत महापुरूषों का फूलमाला पहनाकर स्वागत किया।
इस अवसर पर कोठारी महंत जसविन्दर सिंह, महंत राघवेंद्र दास, श्रीमहंत रघुमुनि, स्वामी ऋषिश्वरानंद, बाबा हठयोगी, महंत दुर्गादास, स्वामी निर्मलदास, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी राममुनि, स्वामी दिनेश दास, स्वामी चिदविलासानंद, स्वामी ऋषि रामकृष्ण, स्वामी शिवानंद भारती, स्वामी सुतिक्ष्ण मुनि, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी अनंतानंद, संत सुतिक्ष्ण मुनि सहित बड़ी संख्या में सभी तेरह अखाड़ों के संत महापुरूष एवं श्रद्धालु उपस्थित रहे।