अवतारी महापुरूष थे गुरूनानक देव-श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज

Haridwar News
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राकेश वालिया

हरिद्वार, 7 सितम्बर। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में गुरूनानक देव का ज्योति ज्योत पर्व श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस दौरान अखाड़े में स्थित गुरूद्वारे में अरदास व शबद कीर्तन किया गया। श्रद्धालु संगत को संबोधित करते हुए श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि गुरूनानक देव ने देश दुनिया का भ्रमण कर अंधविश्वास और आडंबरों का विरोध कर समाज का मार्गदर्शन किया और समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया।

उन्होंने समाज से जातपात का भेदभाव समाप्त करते हुए सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए लंगर प्रथा की शुरूआत की। जिससे सेवा और भक्ति भाव का संदेश संपूर्ण विश्व में संचारित हुआ। गुरू नानक देव की वाणी, शांति, ज्ञान और वैराग्य से ओतप्रोत है। उन्हीं के बताए मार्ग पर चलकर निर्मल संप्रदाय के संत महापुरूष राष्ट्र कल्याण में अपना योगदान प्रदान कर रहे हैं। अखाड़ा परिषद के उपाध्यक्ष महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री व निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविन्दर सिंह महाराज ने कहा कि गुरूनानक देव एक अवतारी महापुरूष थे। जिन्होंने समाज को ज्ञान की प्रेरणा देकर समाज में व्याप्त अंधकार को दूर किया और समस्त जाति को मानवता का संदेश दिया। उनके आदर्शों का अनुसरण करते हुए संत समाज मानव सेवा हेतु सदैव तत्पर है और भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित है।

ऐसे महापुरूषों को संत समाज सदैव नमन करता है। महामण्डलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरी व स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि महापुरूषों ने समाज को सदैव नई दिशा प्रदान की है। गुरूनानक देव संपूपर्ण मानवता के संरक्षक थे। जिन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से समाज को परिवर्तित किया। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। गुरूनानक देव ने सच्चाई के मार्ग का अनुकरण करते हुए संपूर्ण  विश्व का भ्रमण किया और अपना जीवन मानव सेवा में समर्पित किया। गुरूनानक देव समाज के सच्चे चिंतक व संरक्षक थे। कार्यक्रम में पधारे सभी संत महापुरूषों का महंत अमनदीप सिंह महाराज ने फूलमाला पहनाकर स्वागत किया।

इस अवसर पर महंत लक्ष्मण सिंह शास्त्री, महंत राजिन्दर सिंह, महंत ज्ञान सिंह, महंत गुरूभक्त सिंह, पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी, महंत देवानंद सरस्वती, महंत प्रेमदास, महंत अरूणदास, म.म.स्वामी कपिलमुनि, महंत दामोदर दास, महंत जमुनादास, संत तलविन्दर सिंह, संत जसकरन सिंह, संत सुखमन सिंह, ज्ञानी जैल सिंह, महंत हरभजन सिंह, महंत निर्मल सिंह, संत रामस्वरूप सिंह, महंत खेमसिंह, महंत मोहन सिंह, महंत दिनेशदास, महंत दुर्गादास, महंत सुमितदास, महंत ज्ञानानंद स्वामी ललितानंद गिरी, संत रोहित सिंह आदि मौजूद रहे।

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