संहार और पुनः संस्थापन के अधिपति हैं भगवान नारायण-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

Haridwar News
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ब्यूरो


हरिद्वार, 3 जून। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट द्वारा शिवालिक नगर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन की कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया जब आसुरी शक्ति देवलोक पर प्रहार कर देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर देती है, तब त्रैलोक्य में संतुलन भंग हो जाता है। देवता दिशाहीन होकर इधर-उधर विचरण करने लगते हैं। उस समय उन्हें संहार और पुनः संस्थापन के अधिपति भगवान नारायण का स्मरण होता है। सभी देवता मिलकर भगवद्-शरणागत होते हैं, विनयपूर्वक प्रार्थना करते हैं और भगवान आश्वस्त करते हैं कि वे अधर्म पर धर्म की विजय पुनः स्थापित करेंगे।
कालान्तर में भगवान स्वयं या अपनी शक्तियों द्वारा बल, बुद्धि और युक्ति से असुरों का विनाश कर पुनः धर्म-संस्थापन करते हैं। यह चिरंतन लीला वेद, पुराण एवं इतिहास में बहुलता से वर्णित है और इनका अध्ययन अत्यावश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति को इन लीलाओं को जानने के लिए वेद पुराणों का स्वाध्याय करना चाहिए। शास्त्री ने बताया कि यह कथा मात्र भौतिक असुरों की नहीं, आत्मा के भीतर के भीतरी द्वंद्वों की भी है। मानव जीवन का परम लक्ष्य है सुख-दुःख के द्वंद्व से परे चैतन्य की अवस्था तक पहंुचना। सुख और दुःख ये दो विपरीत अनुभव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब सुख प्रबल होता है, दुःख पीछे छिपा रहता है; और जब दुःख प्रकट होता है, सुख लुप्त हो जाता है। परंतु इन दोनों का चक्र अनवरत चलता रहता है। वास्तविक आनंद इंद्रियों या बुद्धि से नहीं जाना जा सकता। यह प्रज्ञा से ही बोधगम्य है। वही प्रज्ञा जो वेद में प्रज्ञानं ब्रह्म कहकर परिभाषित की गई है। विवेक का आश्रय लेने पर ही प्रज्ञा जागृत होती है और वही प्रज्ञा परमात्मा की अमिट विभूति है। ईश्वर और उसकी विभूति में भेद नहीं है। जिस प्रकार लहर और जल पृथक नहीं हो सकते, उसी प्रकार चैतन्य और चैतन्यवत्ता (ईश्वर) अलग नहीं हैं। जीवन शाश्वत है और जब साधक इस शाश्वतता का आत्मसात् कर लेता है, तब वह जान लेता है कि आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं। यही मोक्ष, सिद्धि और योग है। यही वह ज्ञान है जो आत्मा को अमृत की ओर ले जाता है। ऐसे विषयों का अध्ययन केवल बौद्धिक विमर्श नहीं, आत्मानुभूति की दिशा में पहला चरण है। हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी वैदिक परंपरा, उपनिषदों, और पुराणों को केवल गाथा नहीं समझें। बल्कि जीवन का मार्गदर्शन मानकर इन कथाओं का श्रवण करें। तभी आत्म कल्याण संभव होगा। मुख्य यजमान किरण गुप्ता, अशोक गुप्ता, डा.अंशु गुप्ता, डा.राजकुमार गुप्ता, मिशिका गुप्ता, मिहिका गुप्ता ने भागवत पूजन किया।

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