ब्यूरो
हरिद्वार, 21 मार्च। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार के तत्वधान में श्री राधा रसिक बिहारी मंदिर रामनगर ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भारतीय संस्कृति में वृक्षों का विशेष महत्त्व है। वृक्ष हमारे जीवन के प्राण हैं। पुराणों तथा धर्म-ग्रंथों में पेड़-पौधों को बड़ा पवित्र और देवता के रूप में माना गया है। इसलिए उनके साथ पारिवारिक संबंध बनाए जाते हैं। जब से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है तब से लोक विश्वासों में दृढ़ता आई है। इसलिए पाप और पुण्य की अवधारणा भी उसके साथ जुड़ गई है और देव तुल्य वृक्षों का संरक्षण पुण्य व उनका विनाश करना पाप स्वरूप माना जाने लगा है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य वृक्षों का आरोपण करते हैं, वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र होकर जन्म लेते हैं। जो वृक्षों का दान करता है, वृक्षों के पुष्पों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करता है और मेघ के बरसने पर छाता के द्वारा अभ्यागतों को तथा जल से पितरों को प्रसन्न करता है। पुष्पों का दान करने से समृद्धिशाली होता है। ऋग्वेद में वृक्षों को काटने या नष्ट करने की निंदा करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार दुष्ट बाज पक्षी दूसरे पखेरुओं की गरदन मरोड़ कर उन्हें दुख देता है और मार डालता है, तुम वैसे न बनो और वृक्षों को दुख न दो। इनका उच्छेदन न करो, ये पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।
मनुस्मृति में वृक्षों की योनि पूर्व जन्म के कारण मानी गई है और इन्हें जीवित एवं सुख-दुख का अनुभव करने वाला माना गया है। परम पिता परमात्मा ने वृक्ष का आविर्भाव संसार में परोपकार के लिए ही किया है, ताकि वह सदैव परोपकार में ही रत रहे। खुद भीषण धूप, गर्मी में रहकर दूसरों को छाया प्रदान करना और अपना सर्वस्व दूसरों के कल्याण के लिए अर्पित कर देना वृक्ष का सत्पुरुष के समान ही आचरण को दर्शाता है। वृक्षों की छाया में बैठकर ही हमारे न जाने कितने ही ऋषि-मुनियों ने तपस्याएं की हैं। वट सावित्री के अवसर पर स्त्रियां अचल सौभाग्य देने वाले बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं। गुरुवार के दिन केले के वृक्ष की पूजा की जाती है।
इसके पत्ते पर भोजन करना शुभ माना जाता है। पारिजात वृक्ष को कल्पवृक्ष मानकर पूजा जाता है। अशोकाष्टमी के दिन अशोक वृक्ष की पूजा दुख को मिटाकर आशा को पूर्ण करने के लिए की जाती है। आंवले के वृक्ष में भगवान् विष्णु का निवास मानकर कार्तिक मास में इसकी पूजा, परिक्रमा करके स्त्रियां सुहाग का वरदान मांगती हैं। आम के पत्ते, मंजरी, छाल और लकड़ी यज्ञ व अनुष्ठानों में उपयोग की जाती हैं। पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। इस पर जल चढ़ाने, पूजा करने से संतान सुख मिलता है। इसके तने पर सूत लपेटना और परिक्रमा लगाने का भी विधान शास्त्रों में बताया गया है। तुलसी की नित्य पूजा करके जल चढ़ाना और इसके पास दीपक जलाकर रखना भारतीय नारियों का एक धार्मिक कृत्य है।
विष्णु भगवान की प्रिया मानकर इसका पूजन किया जाता है। तुलसीदल का काफी महत्त्व माना जाता है। शास्त्री ने बताया जो भी अपने जीवन में वृक्षारोपण करता है उसका यह लोक और परलोक दोनों सुधर जाते हैं। परंतु जो वृक्षों को काटता है। उसे घोर नरक में जाना पड़ता है। कथा में मुख्य यजमान धीरज शर्मा, दीप्ति भारद्वाज, मनोज भारद्वाज, रेनू अरोड़ा, भागवत परिवार सचिव चिराग अरोड़ा, रिंकी भट्ट, संध्या भट्ट, रिंकू शर्मा, हर्ष ब्रह्म, शिमा पाराशर, वीना धवन, वंदना अरोड़ा, दीपिका सचदेवा, रीना जोशी, मोनिका विश्नोई, सारिका जोशी, सोनम पाराशर, रोजी अरोड़ा, सोनिया गुप्ता, किरन शर्मा, श्वेता तनेजा, शालू आहूजा, अल्पना शर्मा, नीरू सचदेवा पंडित हेमंत कला, पूनम, राजकुमार आदि ने भागवत पूजन किया।