तनवीर
महंत रविंद्रपुरी पहुंचे उज्जैन, शंकराचार्य ने भेजी शुभकामनाएं
हरिद्वार:–कनखल के रहने वाले संत सुमन भाई 15 जनवरी मकर संक्रांति के दिन निरंजनी अखाड़े के विधिवत रूप से महामंडलेश्वर बन जाएंगे। वे कनखल के पहले ऐसे निवासी होंगे जो किसी अखाड़े के मामले से बनने जा रहे हैं।उनका पट्टाभिषेक समारोह उनके गुरु मोनी बाबा के उज्जैन स्थित मोन तीर्थ आश्रम में होगा। उन्होंने कहा कि वे निरंजनी अखाड़े के संपर्क में आकर और उनके महामंडलेश्वर बनने की खबर से अत्यंत हर्षित है। निरंजनी अखाड़ा दशनामी सन्यासी अखाड़ों में विशिष्ट स्थान रखता है। उन्होंने श्री निरंजनी पंचायती अखाड़े के सचिव और श्री मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी महाराज का आभार जताया। उनका पट्ठा अभिषेक समारोह निरंजनी पंचायती अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज और श्री महंत रवींद्र पुरी महाराज के पावन सानिध्य में होगा।महंत रवींद्र पुरी महाराज ने कहा कि संत सुमन भाई जैसे विद्वान संत के अखाड़े से जुड़ने से संत समुदाय बेहद खुश है। यह अखाड़े के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
संत सुमन भाई का बाल बाल्यकाल और युवावस्था कनखल और हरिद्वार की गलियों बीता है उन्होंने अपनी शिक्षा दीक्षा एस डी इंटर कॉलेज कनखल, म्युनिसिपल भल्ला इंटर कॉलेज और गुरुकुल कांगड़ी में प्राप्त की उन्हें शुरू से ही रामचरितमानस के प्रति लगाव था। उन्होंने हरिद्वार में 1975 में मानस उत्थान समिति धार्मिक संस्था का गठन कर रामचरितमानस का प्रचार प्रसार किया। उनके गुरु और मोन तीर्थ उज्जैन के संस्थापक कनखल के ही रहने वाले मोनी बाबा थे। जब संत सुमन भाई हरिद्वार में रहते थे।तब वे अखाड़ों और आश्रमों संतो महंतो तपस्वी और कोई विद्वान लोगों के संपर्क में आए और उनका रुझान रामकथा की ओर चला गया वे 1981 में उज्जैन चले गए और उन्होंने अपने गुरु के आश्रम मोन तीर्थ का कामकाज संभाला और उनके उत्तराधिकारी बने संत सुमन भाई कहते हैं कि उनका आज भी कनखल और गंगा से गहरा लगाव है।वह आज भी कनखल की गलियों को नहीं भूल पाते जहां उनका बचपन बीता है
कनखल में 1958 में उनका जन्म पंडित मामराज शर्मा जी माता श्रीमती कांति देवी शर्मा के घर पर हुआ वे अपनी साधना के सिलसिले में तंत्र सम्राट बाबा कामराज के शिष्य सिद्ध योगी लंगड़े बाबा के संपर्क में चंडी पर्वतमाला पर 4 साल तक रहे। उनकी लंगड़े बाबा से मुलाकात आध्यात्मिक जगत के सिद्ध योगी आनंद भारद्वाज ने करवाई थी।रामचरितमानस कथा करने की प्रेरणा उन्हें कनखल के ही रहने वाले प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित भगवान बल्लभ पांडे से मिली।
संत सुमन भाई का छात्र जीवन में नाम चंद्र भूषण शर्मा सुमन था। वे कनखल में रहकर हिंदी के मुर्धन्य साहित्यकार आचार्य किशोरी राज वाजपेई , डॉ विष्णु दत्त राकेश, शिक्षाविद बसंत कुमार पांडे ,बाबा राम भुवन दास ,उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़े के महंत गोविंद दास , महंत गोपाल दास ,महंत राजेंद्र दास, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के श्री महंत गिरधर नारायण पुरी, निरंजनी अखाड़े के महंत शंकर भारती , मानव कल्याण आश्रम की ललितांबा माताजी और स्वामी कल्याणानंद महाराज, मां आनंदमई, जगतगुरु महामंडलेश्वर स्वामी प्रकाशानंद महाराज ,महामंडलेश्वर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि महाराज, महामंडलेश्वर डॉक्टर श्याम सुंदर दास शास्त्री महाराज,शुक्रताल के स्वामी कल्याण देव महाराज ,गंगोत्री के बाबा श्याम चरण दास जी,लखनऊ के सिद्ध संत डॉ जितेंद्र चंद्र भारती जी के संपर्क में कई सालों तक रहे और आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की।
विद्यापीठ पुणे से डिलीट की मानद उपाधि प्राप्त की।संत सुमन भाई के ऊपर शोध ग्रंथ लिखा गया है। जिसका विषय है- ‘रामकथा की वाचिक परंपरा में सुमन भाई का योगदान’ उन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने मानस भूषण की उपाधि दी काशी विद्युत परिषद द्वारा मानस सुमन तथा भारतीय विद्वत परिषद काशी द्वारा मानस राज हंस की उपाधि दी गई। 1974 के कुंभ में देवहरा बाबा ने उनके सिर पर अपने श्री चरण रखे और आशीर्वाद दिया। संत सुमन भाई के आध्यात्मिक गुरु मोनी बाबा के गुरु तथा कथा महारथी पंडित आत्म चंद्र शास्त्री कथा और मदन मोहन मालवीय जी के साथ में धर्म प्रचार में साथ रहे।