जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते हैं मानवाधिकार-ललित मिगलानी

Haridwar News
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तनवीर


हरिद्वार, 9 दिसम्बर। भारतीय जागरूकता समिति के अध्यक्ष हाईकोर्ट के अधिवक्ता ललित मिगलानी ने कहा है कि मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो किसी भी व्यक्ति को जन्म के साथ ही मिल जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और प्रतिष्ठा का अधिकार ही मानव अधिकार है। इन अधिकारों की मांग प्रत्येक मनुष्य कर सकता है। मानवाधिकार दिवस की पूर्व संध्या पर मानवाधिकारों के संबंध में जानकारी देते हुए एडवोकेट ललित मिगलानी ने बताया कि मानव अधिकारों की कोई निश्चित संख्या नहीं है

जैसे-जैसे नए खतरे और चुनौतियाँ सामने आ रहीं हैं, वैसे-वैसे मानवाधिकारों की सूची भी लगातार बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौमिक घोषणापत्र में मानवाधिकारों के बारे में जानकारी दी गयी है। इस घोषणापत्र में कुल 30 अनुच्छेद हैं, जिनमें उल्लिखित मानवाधिकारों को सामान्य तौर पर नागरिक-राजनीतिक और आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक श्रेणियों में बाँटा गया है। इसके अनुच्छेद-3 में व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के अधिकारों की बात कही गई है जो अन्य सभी अधिकारों के उपभोग के लिये जरूरी हैं। अनुच्छेद 4 से लेकर अनुच्छेद 21 तक नागरिक व राजनीतिक अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

इनके अन्तर्गत दासता से मुक्ति का अधिकार, निर्दयी, अमानवीय व्यवहार अथवा सजा से मुक्ति का अधिका, कानून के समक्ष समानता का अधिकार, प्रभावशाली न्यायिक उपचार का अधिकार, आवागमन तथा निवास स्थान चुनने की स्वतंत्रता, शादी कर घर बसाने का अधिकार, विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उचित निष्पक्ष मुकदमें का अधिकार, मनमर्जी की गिरफ्तारी अथवा -बंदीकरण से मुक्ति का अधिकार, न्यायालय द्वारा सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार, अपराधी साबित होने से पहले बेगुनाह माने जाने का अधिकार, व्यक्ति की गोपनीयता, घर, परिवार तथा पत्र व्यवहार में अवांछनीय हस्तक्षेप पर प्रतिबंध, शांतिपूर्ण ढंग से किसी स्थान पर इकट्ठा होने का अधिकार, शरणागति प्राप्त करने का अधिकार, राष्ट्रीयता का अधिकार, अपने देश की सरकारी गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, देश की सार्वजनिक सेवाओं तक सामान पहुँच का अधिकार आदि प्रमुख हैं।

मानवाधिकरों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। यह एक सांविधिक निकाय है। जिसका गठन 1991 के पेरिस सिद्धांतों के मुताबिक हुआ है। मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायत मिलने पर आयोग स्वयं अपनी पहल पर या पीड़ित व्यक्ति की याचिका पर जाँच कर सकता है। आयोग के कार्य-क्षेत्र में जेलों में बंदियों की स्थिति का अध्ययन करना, न्यायिक व पुलिस हिरासत में हुई मृत्यु की जाँच-पड़ताल करना, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और लोगों के गायब होने आदि मामलों की जाँच करना शामिल है। मानवाधिकार के क्षेत्र में शोध कार्य करना या शोध को बढ़ावा देना और लोगों को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करना भी आयोग के कार्यों में शामिल है।

आयोग मानवाधिकार से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय संधियों, सम्मेलनों और रिपोर्ट्स का अध्ययन कर उनके प्रभावी अनुपालन की सिफारिश भी करता है। मिगलानी ने कहा कि आयोग में काफी सुधार किए जाने की आवश्यकता है। शिकायतों के जल्द समाधान के लिए आयोग की शक्तियों को बढ़ाया जाए। संसाधनों व धन की कमी को दूर किया जाए। टास्क फोर्स जैसे किसी कार्यकारी समूह का गठन किया जाए, जो तुरंत कार्रवाई कर सके। सरकारों, पुलिस, न्यायपालिका व अन्य जाँच एजेंसियों द्वारा आयोग के साथ सहयोगात्मक रवैया अपनाया जाना चाहिये, जिससे आयोग अपना कार्य बिना किसी बाधा के कर सके।

उन्होंने कहा कि इस सबके साथ यह भी नहीं भूलना चाहिये कि, यदि कोई कार्य हमारे स्वास्थ्य एवं कल्याण के साथ दूसरों के लिये भी नुकसानदेह है तो उसे अधिकार नहीं माना जा सकता है। केवल मानवाधिकार आयोग द्वारा शिकायतों का निवारण करने से ही मानव अधिकारों का संरक्षण नहीं हो पायेगा। लोगों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना होगा। साथ ही, यह भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हुए दूसरों के अधिकारों का सम्मान भी करना है। अर्थात जो आजादी, समानता, प्रतिष्ठा, शांति आप अपने लिये चाहते हैं, वह दूसरों को भी दें। तब जाकर हम सब अपने मानवाधिकारों का विकास और संरक्षण कर पाएँगे।

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