राज्यपाल ने किया ऋषिकुल में आयोजित पंचकर्म चिकित्सा पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का उदघाटन

Haridwar News
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तनवीर


हरिद्वार, 29 सितम्बर। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के ऋषिकुल परिसर में पंचकर्म चिकित्सा पर अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन राज्यपाल ले.जनरल (से.नि) गुरमीत सिंह, कुलपति प्रो.अरुण कुमार त्रिपाठी, अपर सचिव विजय कुमार जोगदण्डे, पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण, सेमिनार के अध्यक्ष प्रो.के.के. शर्मा ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
राज्यपाल ले.जनरल गुरमीत सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य ही जीवन का आधार है। विश्व की सभी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान आयुर्वेद मे निहित है। आयुर्वेद की मांग आज वैश्विक स्तर पर हो रही है। भोजन ही औषधि है इसलिए हमें अपने पारम्परिक भोजन को वैश्विक स्थान देना होगा। आयुर्वेद और तकनीक को जोड़कर आगे बढ़ना होगा। शोध और प्रमाण के साथ विश्व में आयुर्वेद को पंहुचाने की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया, हीलिंग इन इंडिया ब्रांड वैल्यू को विकसित करना होगा।

हमें सुदृढ़ संकल्प लेना होगा और आयुर्वेद को क्लीनिक एरिया में लाना होगा। उन्होंने पूरे विश्व का आवाहन किया कि वे भारत में आए और उत्तराखंड में क्लीनिकल वैलनेस के माध्यम से स्वास्थ्य को प्राप्त करें।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद में पंचकर्म विशेष स्थान रखता है। पंचकर्म पर आधारित शरीर शोध की क्रियाएं हमें आरोग्य प्रदान करती है। उत्तराखंड में पंचकर्म एवं वैलनेस सेक्टर में अपार संभावनाएं हैं ।
डा.विजय कुमार जोगदण्डे ने कहा कि आयुर्वेद के साथ आधुनिक विज्ञान का प्रयोग आयुर्वेद को आगे ले जाने का कार्य करेगा। ऋषियों द्वारा लिखित आयुर्वेद आज की चिकित्सा के क्षेत्र में आवश्यकता की पूर्ति करेगा। आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हम आत्मविश्वास पूर्वक आयुर्वेद की स्थापना कर रहे हैं। आयुर्वेद में लंघन का विशेष महत्व है, जो उपवास के रूप में हमारी संस्कृति व आरोग्य की रक्षा करने का कार्य कर रहा है। अन्न से मन बनता है और मन से कार्य होता है। अतः अन्न अच्छा हो। शारीरिक बल बल नहीं है। अपितु अन्तःकरण का बल ही वास्तविक बल है। उन्होंने कहा कि उपवास भारत में प्रधान विषय है। लेकिन इस पर कार्य करते हुए ऑटोफेजी में जापान के वैज्ञानिक को नोबेल प्राइज मिलता है। अतः हमें अपने ज्ञान को संरक्षण करने और उसे प्रयोग कर जनोपयोगी बनाने की आवश्यकता है।
प्रो.के.क.े शर्मा ने कांफ्रेंस की भूमिका, पंचकर्म में रीसेंट एडवांसमेंट की आवश्यकता एवं अलग-अलग सेक्टर में किस प्रकार पंचकर्म लाभप्रद हो सकता है की रूपरेखा प्रस्तुत की। कार्यक्रम में सभी अतिथियों ने कार्यक्रम की अनुसंधान संकलन पर आधारित अनुसंधानम् सोविनियर का विमोचन भी किया। प्रोफेसर आलोक श्रीवास्तव ने पंचकर्म विभाग के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर के.के.शर्मा की जीवन काल में अर्जित 37 साल की उपलब्धियां की जानकारी दी। उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राज्यपाल ने प्रो.के.के. शर्मा को लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान से सम्मानित भी किया।
इससे पूर्व वैज्ञानिक सत्र में पंचकर्म विशेषज्ञ प्रोफेसर उमाशंकर निगम, प्रोफेसर संजय त्रिपाठी, प्रोफेसर गोपेश मंगल ने पंचकर्म पर आधारित उन्नत तकनीक का परिचय लोगों से कराया। आयुर्वेद में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कैसे पंचकर्म में उपयोग किया जा सकता है, इसके बारे में भी विस्तार से चर्चा की। प्रोफेसर निगम ने प्राचीन पंचकर्म की विधाओं को किस प्रकार सरल तरीके से अपने क्लीनिकल जीवन में स्थापित कर सकते हैं, पर प्रकाश डाला। डा.संजय त्रिपाठी ने कहा कि पूरा विश्व इस समय आयुर्वेद की तरफ देख रहा है। विशेष रूप से कोविड काल के बाद आयुर्वेद की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। ऐसे में पंचकर्म की विधाओं के प्रयोग से शरीर का शोधन कर औषधीयों का प्रयोग किस प्रकार से किया जाना चाहिए। इस बारे में विस्तार से चर्चा की। दूसरे वैज्ञानिक सत्र में प्रोफेसर रीना दीक्षित अध्यक्ष, सह अध्यक्ष डा.सलोनी गर्ग एवं मुख्य वक्ता हिमालय कालेज के प्रोफेसर नीरज श्रीवास्तव ने पंचकर्म की व्यापकता एवं चाइल्ड एवं मदर में किस प्रकार पंचकर्म के प्रयोग से आरोग्य की प्राप्ति की जा सकती है, के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। तृतीय वैज्ञानिक सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर अनूप कुमार गक्खर ने की। जिसमें डा.शीतल वर्मा, डा.संजीव रस्तोगी ने आयुर्वेद में रिसर्च की व्यापकता और पंचकर्म में किस प्रकार आधुनिक पद्धतियों का प्रयोग करके एविडेंस बेस्ड पंचकर्म को स्थापित किया जा सकता है। इसके बारे में उदाहरण के साथ प्रकाश डाला। चतुर्थ वैज्ञानिक सत्र में प्रोफेसर खेमचंद शर्मा, डा.शुचि मित्रा, डा.राजीव कुरेले ने पंचकर्म की उपादेयता एवं पंचकर्म के लिए कैसे वैद्य अपनी औषधि का निर्माण स्वयं करें। इस विषय में विस्तार से प्रकाश डाला और पंचकर्म में प्रयुक्त होने वाली तेल कल्पनाओं आदि की निर्माण विधियों एवं उनके गुणवत्ता निर्धारण की बारीकियां को बताया।
कार्यक्रम में तीनों परिसर के समस्त शिक्षकों, स्नातकोत्तर स्कॉलरों के साथ देश भर से 500 से अधिक प्रतिभागी प्रतिभाग कर रहे हैं एवं देश भर के प्रसिद्ध संस्थाओं के पंचकर्म के विशेषज्ञ वैज्ञानिक शोधार्थी शामिल हुए हैं। ऋषिकुल परिसर के निदेशक प्रोफेसर दिनेशचंद्र सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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