विचार :-बेटी ही क्यों बहू क्यों नहीं ?

Haridwar News
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विचारक रश्मि मोंगा

अक्सर कहा जाता है की बहू कभी बेटी की जगह नहीं ले सकती किंतु मेरा मानना है कि बहू बेटी से भी बढ़कर होती है इसका साक्षात प्रमाण मुझे हाल ही में अपने मुंबई प्रवास के दौरान महसूस हुआ. खासकर मेरी बीमारी के दौरान। वैसे तो सदैव हमारी हर परेशानी को बांटकर हल करने का प्रयास करती है ।
40 साल से अधिक नवरत्न सार्वजनिक संस्थान में नौकरी के कारण जिंदगी हमेशा भागती दौड़ती भरी रही।बच्चों की जिम्मेदारी से निर्वित होने के पश्चात समाज के लिए भी कुछ करने की इच्छा हुई अतः पति पत्नी दोनों विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर समाजिक सेवा में अहम भूमिका निभाते रहे, निजी स्तर पर भी सेवा के अन्य कार्य में संलग्न रहे जिसमें बच्चों का भी पूरा सहयोग मिला। इन व्यस्तताओं के बीच में बच्चों के साथ एक लम्बा व अच्छा समय बिताने के लिए मुंबई में बेटे बहू के पास गये लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था । मुंबई प्रवास के दौरान अचानक मेरा स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया एक महीना अस्पताल में ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहना पड़ा. जीवन संघर्षपूर्ण चल रहा था कब क्या हो जाए कुछ पता नहीं ?

इस मुश्किल के समय में दोनों बच्चों की गंभीरता, हिम्मत, कर्तव्यनिष्ठा व सेवाभाव ने हमें संभाला। पति मेरे पास अस्पताल में ही रहते थे मुम्बई में एक जगह से दूसरी जगह की दूरी 15-20 किलोमीटर से कम नहीं होती इसके बावजूद भी कभी हमें अस्पताल से खाना नही लेने दिया चारो समय स्वास्थवर्धक नाश्ता-खाना स्वयं बनाती व बेटा लेकर आता था इसके अतिरिक्त जो और भी अन्य सुविधाओं का भी ध्यान रखा। उनके जिन गुणों से हम अभी तक अनजान थे, पता नही था कि इतने समझदार हो गये हैं । अब उनको पास से समझने का, उनकी भावनाओं को जानने का, परिवार को समझने , एक आशावादी नजरिया देखने को मिला । हर रोज हिम्मत बढ़ाना कि आपको हमारे लिए ठीक ही होना है, तन मन धन से सेवा की, पापा को भी हौसला देते रहे ।

बेटे में जो संस्कार हैं वह तो हम जानते हैं। बहू भी संस्कारित शिक्षित गुजराती परिवार से है और हमारा परिवार पंजाबी है इसके बावजूद वह परिवार की सभी पारिवारिक परम्पराओं को आत्मसात करके पूरी निष्ठा से निभाती है चाहे हमारे पास हो या दूर, हमें कभी यह अहसास नहीं हुआ कि वह दूसरे परिवार से आई है ।हमरा प्यार , विश्वास और अपनापन पाकर वह कली महकते हुए मस्ती से खिलखिलाने लगी उसकी चहकती हँसी से पूरा घर खिल-खिल जाता है घर में एक अलग ही रौनक रहती है । उसको भी अहसास है कि यह अपना ही घर है और हो भी क्यों ? जब बेटा अपना है तब बहू दूसरी कैसे ? बहू तो अब इस घर का मान-सम्मान, परम्पराओं व संतति को आगे बढ़ाने वाली है । शादी के बाद नये परिवेश को समझने में कुछ समय तो वैसे ही लगता है। हमारा रिश्ता सास बहू से ज्यादा मित्रवत विश्वास सम्मान व एक दूसरे की भावनाओं को समझने वाला है और यह दोनों तरफ से होता है ।
साथ ही इसका का श्रेय उसके मम्मी पापा को जाता है जिन्होंने एक कली में संस्कारों की खुशबू भरकर ससुराल व समाज को महकाने के लिए रंग भरे।
दूर रहकर भी बच्चे हर समय सम्पर्क में रहकर हमारी समस्या से अवगत रहते हैं और समाधान करते हैं त्यौहारों पर आकर हमें अकेलेपन का अहसान नहीं होने देते हैं सब संभाल लेते हैं त्योहारों की व्यस्तता में समय कब निकल जाता था पता ही नहीं चलता था एक गुणतापूर्ण समय व्यतीत हो जाता है

जीवन में रिश्ते निभाना कोई मेरी बहू से सीखे। जिसने हमें अपने अपनत्व, सम्मान प्यार से अभिभूत कर हृदय जीतकर यह बता दिया कि एक सुशील बहू भी सुखी परिवार का आधार है। अपनी बेटी को जो अभी केवल 5 साल की है जिसे वह अभी से सूशिक्षा के साथ-साथ प्रेरणादायक चरित्रों से संस्कारित भी कर रही है हम हैरान है कि इतने छोटे बच्चे में इतना ज्ञान संस्कार व सम्मान करना कैसे सिखाया । मेरे अस्पताल से घर पहुँचने पर द्वार पर ही पोती अपने हाथ से बनाया वेलक़म दादी दादू का कार्ड लेकर स्वागत करते हुए घर में बने मन्दिर ले जाकर छोटे छोटे हाथों से आरती लेकर मेरे सिर व चेहरे पर लगाकर कमरे में लाकर कहती है गेट वैल सून, इतने समय पश्चात सभी के चेहरे पर आशा की किरण देखकर कैसे न जीने का संबल मिलता जो मैं हार चुकी थी ।इतने उच्च संस्कारों वाले इस परिवार के लिए दिल से सदैव आशीर्वाद निकलता है.।

टूटते हुए परिवारों को देखती हूं तो लगता है की फिर से जुड़ने की आवश्यकता है.अपनों से जुड़े रहने पर जो सुख मिलता है उसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता परन्तु जीवन में एक समय ऐसा आता है जब लगता है काश कोई अपना होता । आज जबकि निजी व्यस्तता के कारण मधुर सम्बन्धों को भूल रहे हैं । चहुँ ओर रिश्तों में नकरात्मकता बढ़ती जा रही है, परिवार बिखर रहे हैं सामाजिक ढांचा अस्त व्यस्त हो रहा है तब क्यों न हम यह प्रयास करें कि सकारात्मक को आगे लायें जिससे समाज को कुछ प्रेरणा मिले।

कुछ स्वास्थ्य लाभ के 2 महीनों पश्चात हरिद्वार वापस आकर भी उनकी याद सदा बनी रहती है ।.हर चीज को करीने से रखना, एक कुशल गृहणी की तरह घर चलाना , पति के हर सुख दुख में भागीदारी निभाकर सच्चा जीवनसाथी बनना, सच में ईश्वर ने दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाया हैं ।बच्चे की देखभाल के साथ-साथ सास-ससुर की आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए इतना स्नेह और आदर देना ।सच में एक संस्कारित सुशील बहू ही घर को स्वर्ग बना सकती है ।
मेरी बहू एक आदर्श और प्यारी बहू साबित हुई । प्रज्ञा ने मुझे अपने स्नेह , सम्मान, सेवा के कारण आज लिखने पर मजबूर कर दिया बेटी ही क्यों बहू क्यों नहीं?

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