तनवीर
कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर देव दीपावली धूमधाम से मनाई गई।इस मौके पर हरकी पैड़ी पर हजारों दीप जलाए गए।मान्यता है कि इस दिन देवता दिवाली मनाते हैं। पुराणों के अनुसार देव दिवाली के दिन ही भगवान विष्णु को बलीराजा से मुक्ति मिली थी और वह स्वर्ग पधारे थे।जिसके बाद सारे देवताओं ने दीप जलाकर खुशियां मनाई। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संख्या पर देव दिवाली मनाई जाती है।
देवताओं द्वारा मनाई जाने वाली दिवाली धरती को ऊर्जा देती है, और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है. कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड पर कई हजार दीप जलाकर देव दीपावली को भव्य तरीके से मनाया गया।साथ ही आतिशबाजी भी की गई।
श्रीगंगा सभा के अध्यक्ष नितिन गौतम ने बताया कि आज के दिन देवताओं के निमित्त दीपदान का आध्यात्मिक महत्व है। देव दिवाली के दिन देवताओं के लिए दीपदान किया जाता है। उससे हमारे जीवन में आजीवन उजाला रहता है, क्योंकि दीप प्रकाश का प्रतीक है. यह परंपरा अनादि काल से चली आ रही है।
श्रीगंगा सभा के महामंत्री तन्मय वशिष्ठ ने बताया कि हरकी पैड़ी ब्रह्मकुंड एक अलौकिक स्थान है।इस स्थान पर हजारों दीप जलने का दृश्य बहुत ही अद्भुत है।उन्होंने बताया कि आज देव दिवाली के मौके पर उत्तरकाशी के सिल्क आरा में टनल हादसे में फंसे 41 मजदूरों के लिए मां गंगा से कामना की गई है कि वह जल्द से जल्द अपने परिवार से मिले और उसे टनल से बाहर आए हमें उम्मीद है कि मां गंगा हमारी कामना सुनेगी और जल्दी मजदूरों को अपने परिवार से मिलाएगी।
तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित ने कहा कि दीपक की अग्नि को सूर्य के रूप में भी मानते हैं। सूर्य और अग्नि एक समान है सूर्य का प्रारूप यह दीपक की अग्नि है। उन्होंने कहा कि गंगा के पावन तट पर दीया जलाने से केवल देव ही प्रसन्न नहीं होते बल्कि पितृ भी प्रसन्न होते हैं। गंगा के तट पर आ कर अगर पितरों को याद नहीं किया तो आपका तीर्थ की यात्रा अधूरी रह जाती है। देव दिवाली हमारी संस्कृति को दर्शाने का सशक्त माध्यम है।
देव दिवाली के मौके पर हरकी पैड़ी पर पहुंचे हजारों श्रद्धालु खुश नजर आए।श्रद्धालुओं का कहना है कि हरकी पैड़ी पर आकर उन्हें का काफी अच्छा लगा. बताया जाता है कि इस दिन देवता दिवाली मनाते हैं, जिसमें गंगा किनारे हजारों दीप जलाए जाते हैं।