सबसे पहले सुखदेव मुनि राजा परीक्षित को सुनाई थी श्रीमद्भागवत कथा-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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ब्यूरो


हरिद्वार, 19 अगस्त। कनखल स्थित श्री दारिद्र भंजन महादेव मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने कथा का श्रवण कराते हुए बताया कि सबसे पहले सुखदेव मुनि ने शुक्रताल में राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कराया था। राजा परीक्षित को जब पता चला कि पृथ्वी पर कलयुग का आगमन हो चुका है तो वे कलयुग को ढूंढते हुए गंगा के तट पर पहुंचे। कलयुग से भेंट होने पर राजा परीक्षित ने उसे पृथ्वी से जाने के लिए कहा। तब कलयुग ने राजा परीक्षित से कहा कि सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग की तरह उसे भी भी रहने के लिए जगह दो। तब राजा परीक्षित ने कलयुग को जहां जुआ खेला जाता हो।

जहां निरपराध पशुओं की हत्या की जाती हो। जहां शराब पी जाती हो और जहां पराई स्त्री के साथ दुर्व्यवहार किया जाता हो ऐसे चार स्थानो पर कलयुग को रहने के लिए कहा। कलयुग ने राजा परीक्षित से कहा कि आप के डर से यह चार कार्य आपके राज्य में नहीं होते हैं। इसलिए आप मुझे कोई अच्छा सा स्थान दीजिए। तब राजा परीक्षित ने कलयुग को रहने के लिए स्वर्ण में वास दिया। राजा परीक्षित ने अधर्म से बना हुआ मुकुट जो कि जरासंध नामक राक्षस का था, को धारण कर लिया और उसी में कलयुग जा कर बैठ गया। जिसके प्रभाव से राजा परीक्षित ने शिकार खेलते हुए वन में समिक मुनि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। समिक मुनि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन तक्षक नामक सर्प उन्हें भस्म कर देगा। राजा परीक्षित को जब इस बात का पता चला तो वे अपने पुत्र जन्मेजय को राजगद्दी देकर शुक्रताल गंगा तट पर पहुंच गए।

शुक्रताल के गंगातट पर वेदव्यास के पुत्र सुखदेव ने सात दिनों तक राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कराया। कथा के प्रभाव से राजा परीक्षित को वैकुंठ धाम प्राप्त हुआ। इस अवसर पर पंडित कृष्ण कुमार शर्मा, राजेंद्र पोखरियाल, पंडित नीरज कोठारी, पंडित रमेश गोयल, पंडित उमाशंकर, पंडित बच्चीराम, ललित नारायण, कैलाश चंद्र पोखरियाल, मारुति कुमार, मीना बेंजवाल, किरण शर्मा, गणेश कोठारी आदि सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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