भगवान केवल प्रेम के वशीभूत रहते हैं-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 16 मार्च। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में हनुमान मंदिर रामनगर कॉलोनी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि भगवान केवल प्रेम के वशीभूत रहते हैं। श्रीमद् भागवत पुराण में वर्णन मिलता है एक बार मां यशोदा श्री कृष्ण को बांधने के लिए कृष्ण के पीछे दौड़ रही होती हैं। श्रीकृष्ण ने देखा कि माँ थक कर पसीना-पसीना हो गई है तो दयावश होकर माता के बँधन में बंध गए। ईश्वर कृपा न करे तब तक जीव ईश्वर को बाँध नहीं सकता। शुद्ध प्रेमलक्षणा भक्ति भगवान को बांधती है। ज्ञान और योग प्रभु को बाँध नहीं सकते। इस लीला का तात्पर्य है कि ईश्वर मात्र प्रेम से वश में हो कर ही कृपा करते है।

जब तक परमात्मा को प्रेम से बांधा न जाए, तब तक संसार का बंधन परमात्मा को बांध नहीं सकता है। मनुष्य जब प्रेम के बंधन में ईश्वर को बाँध लेता है तब जन्म मृत्यु के बंधन से छुटकारा हो जाता है। शास्त्री ने बताया कि भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के हेतु श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा भंग करके शस्त्र धारण किया था। तब भीष्म पितामह ने अपने शस्त्र फेंक दिए और बोले वाह प्रभु मेरी प्रतिज्ञा को सत्य करने के लिए आपने अपनी प्रतिज्ञा भंग की। पूर्ण प्रेम के बिना परमात्मा बंध नहीं पाते। मनुष्य का प्रेम कई हिस्सों में बंटा हुआ है। थोड़ा घर में, थोड़ा धन में, थोड़ा पत्नी में, थोड़ा संतान में यदि वह सारा प्रेम परमात्मा को अर्पण किया जाए तब जाकर परमात्मा बांधा जा सकता है। शास्त्री ने कहा कि जब जीव-दूसरे जीव के साथ प्रेम करे तो एक दिन वह रुलाता है।

परंतु परमात्मा के साथ यदि जीव का प्रेम हो जाए समस्त दुखों से मुक्ति मिल जाती है। मुख्य जजमान अंजू विरमानी, लेखराज विरमानी, दीप्ति भारद्वाज, मनोज भारद्वाज, भागवत परिवार सचिव चिराग अरोड़ा, रेनू अरोड़ा, भावना खुराना, भारत भूषण खुराना, नीतू पावा, कमल पावा, मनीषा शर्मा, अर्जुन शर्मा, पंडित मोहन जोशी, पंडित गणेश कोठारी, पंडित विष्णु गौड, आशीष शर्मा आदि ने भागवत पूजन किया।

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