पितृपक्ष में पृथ्वी लोक पर आकर पितृ ग्रहण करते हैं श्राद्ध-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 28 सितम्बर। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट द्वारा गोकुलधाम कॉलोनी ज्वालापुर में 29 सितम्बर से श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष श्राद्ध 29 सितम्बर भाद्र पूर्णिमा से प्रारंभ हो रहा ही और 14 अक्तूबर आश्विन अमावस्या को पितृ विसर्जन के साथ संपन होगा। शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष में सभी पितृ पृथ्वी लोक पर आकर हमारे द्वारा किए गए श्राद्ध को ग्रहण करते हैं। शास्त्री ने बताया श्राद्ध कर्म दोपहर के समय ही करना चाहिए।

शास्त्रों में वर्णन मिलता है सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए, घोर अंधेरे का समय आसुरी और नकारात्मक शक्तियों की प्रबलता के लिए और दोपहर का समय पितरों के लिए होता है। इसके अलावा पितृ लोक मृत्युलोक और देवलोक के बीच और चंद्रमा के ऊपर स्थित बताया गया है। मध्य समय पितरों को समर्पित होने के कारण श्राद्ध का भोज दोपहर में खिलाकर उन्हें समर्पित किया जाता है। शास्त्री ने बताया ये भी माना जाता है सूरज पूर्व दिशा से निकलता है जो कि देवों की दिशा है और दोपहर के समय वो मध्य में पहुंच जाता है। मान्यता है कि धरती पर पधारने वाले हमारे पितर सूरज की किरणों के जरिए ही श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं। चूंकि दोपहर तक सूर्य अपने पूरे प्रभाव में आ चुका होता है। इसलिए दोपहर के समय पूर्वज उनके निमित्त किए गए पिंड श्राद्ध तर्पण पूजन और भोजन को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।

इस कारण श्राद्ध का सबसे श्रेष्ठ समय दोपहर का है। पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि श्राद्ध कभी सूर्य के अस्त होने के समय या अस्त होने के बाद नहीं करना चाहिए। श्राद्ध को पूरे नियम और समर्पण से करना चाहिए। इससे पितरों का आशीष प्राप्त होता है। श्राद्ध वाले दिन आप घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र पर पितृ यंत्र स्थापित कर उनके निमित, तिल के तेल का दीप व सुगंधित धूप करें। इसके बाद तिल मिले जल से तर्पण दें। कुश आसन पर बैठकर गीता के 16वें अध्याय का पाठ करें और भगवान से अपने पितरों की मुक्ति की प्रार्थना करें। इसके बाद ब्राह्मण को पूरे आदर और श्रद्धा के साथ भोजन कराएं। उन्हें भोजन कराने तक स्वयं व्रत रखें। भोजन पूरी साफ सफाई से बनवाएं और प्याज लहसुन का इस्तेमाल न करें।

भोजन के बाद उन्हें वस्त्र-दक्षिणा दें और पैर छूकर आशीर्वाद लें और अपने पितरों से गलती की क्षमायाचना करें। शाम के समय दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखें। इस प्रकार से जो श्राद्ध कर्म कर्ता है उसके पितृ प्रसन्न हो जाते हैं एवं पित्र दोष का निवारण हो जाता है। शास्त्री ने बताया 29 सितंबर से 6 अक्टूबर तक पितृ दोष निवारण के लिए एवं पितरों की प्रसन्नता के लिए गोकुलधाम कॉलोनी निकट ज्वालापुर रेलवे स्टेशन पर श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा ह।ै जिसमें पहुंच कर कथा का श्रवण कर अपने पितरों की मोक्ष की कामना कर सकते हैं।

बताया कि हर पितृपक्ष में श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के द्वारा पितरों के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जाता है।

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