भगवान विष्णु के परम् भक्त थे अंतरिक्ष में तारे के रूप में चमकने वाले धु्रव-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 29 दिसम्बर। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में वसंत विहार कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की कथा सुनाते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि अंतरिक्ष में उत्तर दिशा में चमकने वाले तारे का नाम भगवान विष्णु के परम् भक्त धु्रव के नाम रखा गया है। शास्त्री ने बताया कि स्वयंभु मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था। शतरूपा के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र उत्पन्न हुए।

सुनीति उत्तानपाद की पहली पत्नी थी, जिसका पुत्र ध्रुव था। सुनीति बड़ी रानी थी। लेकिन राजा सुनीति के बजाय अपनी छोटी रानी सुरुचि और उसके पुत्र उत्तम को ज्यादा प्रेम करता था। एक बार राजा ध्रुव को गोद में लेकर बैठे थे। तभी वहां सुरुचि आ गई। अपनी सौत के पुत्र ध्रुव को गोद में बैठा देखकर उसके मन में जलन होने लगी। तब उसने ध्रुव को गोद से उतारकर अपने पुत्र को गोद में बैठाते हुए कहा, राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है और राजसिंहासन का भी अधिकारी हो सकता है, जो मेरे गर्भ से जन्मा हो। यदि तेरी इच्छा राज सिंहासन प्राप्त करने की है, तो भगवान नारायण का भजन कर। उनकी कृपा से जब तू मेरे गर्भ से उत्पन्न होगा तभी सिंहासन प्राप्त कर पाएगा।

पांच साल का अबोध बालक ध्रुव सहमकर रोते हुए अपनी मां सुनीति के पास गया और अपने साथ हुए व्यवहार के बारे में कहा। सुनीति ने ध्रुव को समझाते हुए कहा कि बेटा हमारे सहारा तो जगतपति नारायण ही हैं। नारायण के अतिरिक्त अब हमारे दुख को दूर करने वाला कोई दूसरा नहीं बचा। पांच साल के बालक के मन पर दोनों ही मां के व्यवहार का बहुत गहरा असर हुआ और वह एक दिन घर छोड़कर चला गया। रास्ते में उसे नारद मिले। नारद मुनि ने उससे कहा बेटा तुम घर जाओ तुम्हारे माता पिता चिंता करते होंगे। लेकिन ध्रुव नहीं माना और कहा कि मैं नारायण की भक्ति करने जा रहा हूं। तब नारद मुनि ने उसे ओम नमोः भगवते वासुदेवाय मंत्र की दीक्षा दी।

बालक यमुना नदी के तट पर मधुवन में इस मंत्र का जाप करने लगा। उधर बालक की कठोर तपस्या से अत्यंत ही अल्पकाल में भगवान नारायण प्रसन्न हो गए और उन्होंने दर्शन देकर कहा हे बालक मैं तेरे अंतर्मन की व्यथा और इच्छा को जानता हूं। तेरी सभी इच्छा पूर्ण होगी और तुझे वह लोक प्रदान करता हूं। जिसके चारों और ज्योतिचक्र घुमता रहता है और सूर्यादि सभी ग्रह और सप्तर्षि नक्षत्र जिसके चक्कर लगाते रहते हैं। प्रलयकाल में भी इस लोक का नाश नहीं होगा। सभी प्रकार के सर्वोत्तम ऐश्वर्य भोगकर अन्त समय में तू मेरे लोक को प्राप्त करेगा। शास्त्री ने बताया आज वही पांच वर्ष का बालक ध्रुव तारे के रूप में चमक रहा है।

जो भी भगवान की भक्ति करता है वही आगे चल कर समाज में अपना एवं अपने माता पिता का नाम रोशन करता है। चतुर्थ दिवस की कथा में सभी भक्तों ने भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव भी धूमधाम से मनाया। मुख्य जजमान शांति दर्गन, तिलकराज दर्गन, स्वेता दर्गन, सुमित दर्गन, वीना धवन, अंसुल धवन, विजेंद्र गोयल, मंजू गोयल, प्रमोद पांधी, अंजु पांधी, रंजना सचदेवा, रघुवीर कौर, संजीव मेहता, राजीव मेहता, प्रीती मेहता, भावना मेहता आदि ने भागवत पूजन कर कथाव्यास से आशीर्वाद प्राप्त किया।

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