ब्यूरो
हरिद्वार, 8 जून। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट द्वारा शिवालिक नगर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया संतोषी कभी दरिद्र नहीं होता। सुदामा परम संतोषी ब्राह्मण थे। उन्हें दरिद्र कहना उचित नहीं है। सुदामा चरित्र की कथा का श्रवण कराते हुए शास्त्री ने कहा कि संदीपनी मुनि के गुरूकुल में विद्या अध्ययन के दौरान कृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई। विद्या अध्ययन के बाद दोनों अपने अपने घर चले गए। कालांतर में कृष्ण द्वारिकापुरी के राजा द्वारिकाधीश बन गए। परंतु सुदामा की स्थिति बहुत ही दयनीय थी।
सुदामा पत्नी सुशीला एवं दो बच्चों के साथ झोपड़ी में निवास करते थे। स्थिति इस प्रकार की थी कि खाने, पहनने, ओढ़ने और बिछाने के लिए भी कुछ नहीं था। परंतु सुदामा भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते थे। हमेशा भगवान श्रीकृष्ण की मित्रता को याद करते हुए उनकी भक्ति किया करते। एक बार पत्नी के कहने पर सुदामा एक पोटली में दस मुठ्ठी चावल लेकर श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिकापुरी पहुंचे। द्वारिकापुरी में श्रीकृष्ण ने सुदामा का बहुत आदर सत्कार किया। श्रीकृष्ण जानते थे कि सुदामा मुझसे कभी कुछ नहीं मांगेंगे। इसलिए उन्होंने सुदामा के लाए चावलों में से एक मुट्ठी चावल अपने मुख में डाला और ऊपर के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए।
दूसरी मुट्ठी में नीचे के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए। कुछ दिन बाद सुदामा जब द्वारिकापुरी से वापस अपने गांव पहुंचे तो अपनी झोपड़ी की जगह महलों को देखकर सुदामा को बहुत आश्चर्य हुआ। शास्त्री ने बताया कि भगवान अपने भक्तों को अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। भगवान की कृपा से उनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को मन मे संतोष धारण कर निष्काम भाव से भगवान की भक्ति करनी चाहिए। मुख्य यजमान किरण गुप्ता, अशोक गुप्ता, डा.अंशु गुप्ता, डा.राजकुमार गुप्ता, मिशिका गुप्ता, मिहिका गुप्ता, पंडित हेमंत कला, पंडित दयाकृष्ण शास्त्री, पंडित संजय शास्त्री, अतुल कपूर आदि ने भागवत पूजन किया।