समाचार पत्र-पत्रिका आर्थिक संकट से जूझ रही हैं:त्रिलोक चंद्र भटृ

Haridwar News
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राहत अंसारी

उत्तराखण्ड के मीडियाकर्मियों की प्रमुख संस्था नेशनलिस्ट यूनियन आॕफ जर्नलिस्ट्स (एनयूजे उत्तराखण्ड) ने महानिदेशक सूचना को दिये ज्ञापन में समाचार पत्र-पत्रिकाओं की विज्ञापन सूचीबद्धता सूची में पूर्व से डीएवीपी और विभागीय दर पर सूचीबद्ध अनेक लघु, मध्यम और मझोले समाचार पत्र पत्रिकाओं को उनका पक्ष सुने और जाने बिना बाहर कर दिये जाने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है।

एनयूजे के संरक्षक त्रिलोक चंद्र भटृ ने कहा है कि विज्ञापन सूचीबद्धता की बैठक से पूर्व अपर निदेशक महोदय से हुई वार्ता में आश्वासन मिला था कि पूर्व से डीएवीपी और विभागीय दर पर सूचीबद्ध उत्तराखण्ड के लघु, मध्यम और मझोले समाचार पत्र पत्रिकाओं के साथ लचीलापन रखा जायेगा और यह भी आश्वस्त किया गया था कि किसी भी कमी या आपत्ति के निस्तारण के लिए 15 दिन का समय दिया जायेगा। किन्तु नवीनीकरण के आवेदनों की कमियों और आपत्तियों से समाचार पत्र-पत्रिकाओं को अवगत कराये बिना, उनका पक्ष सुने बिना और आपत्तियों के निस्तारण के लिए अवसर प्रदान किये बिना ही नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध समिति/विभाग द्वारा लिया गया एकाकी निर्णय सर्वथा अनुचित है।

त्रिलोक चंद्र भटृ कहा है कि सूचना विभाग द्वारा 31 मई, 2021 को ही एक अन्य आदेश द्वारा डीएवीपी तथा विभागीय दर पर सूचीबद्ध दैनिक, सांध्य दैनिक तथा साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक तथा त्रैमासिक पत्रिकाओं को डेगू से बचाव आधारित विज्ञापन जारी किया गया है। एक ही तिथि में दो पृथक-पृथक आदेशों द्वारा कुछ समाचार पत्रों को विज्ञापन सूचीबद्धता से बाहर कर देना और कुछ को विज्ञापन जारी करना अनुचित और समाचार पत्रों के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है।

ज्ञातव्य है कि कोरोना महामारी के कारण विगत डेढ़ वर्ष से समाचार पत्र-पत्रिका आर्थिक संकट से जूझ रही हैं। इस दौरान उत्तराखण्ड में ही अनेक पत्रकार करोना के कारण असमय अपनी जान गंवा चुके हैं और कई गंभीर संक्रमण से जूझ रहे हैं। बाजार की गिरती अर्थव्यवस्था के कारण भी समाचार पत्र पत्रिका बंदी के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस संकट के दौर में कई मीडियाकर्मियों के सामने भुखमरी जैसी स्थिति उत्पन्न होने के कारण वे दूसरों की मदद के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। फिर भी अब तक वे किसी तरह अपने प्रकाशनों की निरंतरता बनाये हुये हैं। इस संकट के समय में पूर्व से सूचीबद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं को विभागीय और मानवीय सहयोग कर सहारा देने के बजाय उन्हें सूचीबद्धता/नवीनीकरण से बाहर करना उनके मुख से निवाला छीन कर उनका उत्पीड़न करने जैसा है।

पत्रकारो ने मांग की है कि इस कोराना संकटकाल में पूर्व से डीएवीपी दर प्राप्त और विभागीय दर पर सूचीबद्ध समाचार पत्र पत्रिकाओं को यथावत सूचीबद्ध व नवीनीकृत करने, पूर्व से सूचीबद्ध किसी भी समाचार पत्र के विज्ञापन न रोकने, और रोके गये विज्ञापन समान रूप से सभी को प्रदान करने, किसी समाचार पत्र पत्रिका में कोई विशेष आपत्ति है तो उसको दूर करने के लिए पर्याप्त समय प्रदान किया जाय।

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