ब्यूरो
हरिद्वार, 24 अगस्त। कनखल स्थित श्री दारिद्र भंजन महादेव मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया बिना गुरु के गति नहीं होती और बिना गुरु के ज्ञान नहीं मिल सकता है। इसलिए मनुष्य को गुरु की शरण में अवश्य जाना चाहिए। मनुष्य के प्रथम गुरु माता पिता हैं। माता-पिता से ही बच्चों को संस्कार मिलते हैं। माता-पिता के बाद शिक्षा गुरु हैं। जिनसे हमें शिक्षाएं मिलती हैं। इसके बाद आते हैं दीक्षा गुरु जिनसे प्राप्त मंत्र का जाप कर हम अपना आध्यात्म कल्याण कर सकते हैं। सद्गुरु ही हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर एवं मृत्यु से अमृत की ओर लेकर के जाते हैं।
गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान से हमारे भीतर का अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में गुरु धारण अवश्य करना चाहिए। शास्त्री ने बताया कि स्त्री के लिए उसका पति ही उसका गुरु है। पत्नी अपने पति से गुरू मंत्र प्राप्त कर उसका जाप करे तो आध्यात्म कल्याण हो सकता है। स्त्री के लिए पर पुरुष का चिंतन एवं ध्यान शस्त्रों में अपराध बताया गया है। सप्तम दिवस की कथा में द्वारिकाधीश के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह का वर्णन, सुदामा चरित्र एवं दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा का श्रवण भी कराया।
इस अवसर पर मुख्य यजमान पंडित कृष्ण कुमार शर्मा, रिचा शर्मा, पूजा शर्मा, राजेंद्र पोखरियाल, पंडित नीरज कोठारी, पंडित रमेश गोयल, पंडित उमाशंकर, पंडित बच्चीराम, ललित नारायण, कैलाश चंद्र पोखरियाल, मारुति कुमार, तुषार प्रजापति, किरण शर्मा, गणेश कोठारी आदि मौजूद रहे।