भैरव अष्टमी के उपलक्ष्य में जूना अखाड़े में आयोजित तीन दिवसीय अनुष्ठान संपन्न

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श्रवण झा


हरिद्वार, 17 नवम्बर। भगवान काल भैरव प्राकट्य दिवस के अवसर पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े में चल रहे तीन दिवसीय अनुष्ठान का बृहष्पतिवार को समापन हो गया। बृहस्पतिवार को बाबा आनंद भैरव की प्रातः कालीन महापूजा से समापन समारोह का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर मंगलवार से चल रहे महायज्ञ की पूर्णाहुति भी दी गई।

अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमहंत प्रेम गिरि महाराज, उपाध्यक्ष श्रीमहंत केदार पुरी, सचिव श्रीमहंत शैलेंद्र गिरी, श्रीमहंत महेश पुरी, प्रमुख पुजारी महंत वशिष्ठ गिरी, श्रीमहंत पूर्ण गिरी, श्रीमहंत पशुपति गिरी, कोठारी महंत महाकाल गिरि, महंत परमानंद गिरि, महंत आकाश गिरी, महंत अमृत पुरी, महंत कुट्टू माई, महामंडलेश्वर महंत मोहन गिरी, महंत रतन गिरी, श्रीमहंत परमानंद सरस्वती, महंत शंभू गिरी, थानापति महंत राजेंद्र गिरी सहित सैकड़ों साधु संतों और श्रद्धालु भक्तों ने यज्ञ में आहुति डालते हुए भगवान आनंद भैरव की पूजा अर्चना की। इस अवसर पर रात्रि में भगवान आनंद भैरव को लगाए गए छप्पन भोग को प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को वितरित किया गया। भगवान को परंपरागत रूप से चढ़ाई जाने वाले मीठे रोड तथा काले छोले विशेष रूप से प्रसाद स्वरूप बांटे गए।

काल भैरव अष्टमी का महत्व बताते हुए अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरी महाराज ने बताया कि पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान काल भैरव की उत्पत्ति शिव के रुधिर से हुई। बाद में उक्त रुधिर के दो भाग हो गए। पहला बटुक भैरव दूसरा काल भैरव। बटुक भैरव को भगवान शिव का बाल रूप माना जाता है। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध के परिणाम स्वरूप हई थी।

उन्होंने बताया पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष के हवन कुंड में भगवान शिव के अपमान से व्यथित सती के प्राण त्याग देने के फलस्वरूप शिव के क्रोध से उत्पन्न काल भैरव ने राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर उसका सिर काट दिया था। बाद में भगवान विष्णु ने सती के शव के कई टुकड़े कर दिए थे। जहां जहां टुकड़े गिरे वहां शक्तिपीठ बन गए। उन सभी शक्तिपीठों की रक्षा काल भैरव करते हैं। हरिद्वार में माया देवी शक्तिपीठ की रक्षा बटुक भैरव करते हैं। यह माया देवी शर्मा शक्तिपीठ है, इसलिए सभी अन्य शक्तिपीठों में यह सर्वश्रेष्ठ है।

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