मानसून की दस्तक के बीच डेंगू की चुनोती-सुनील अरोड़ा

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कमल खड़का

हरिद्वार, 9 जून। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रवक्ता सुनील अरोड़ा ने प्रैस को बयान जारी कर कहा कि मानसून शुरू होने वाला है। लेकिन राज्य की त्रिवेंद्र सरकार प्रदेश के विकास कार्यो को लेकर कोई सुध नहीं ले रही है। महाकुंभ मेला शुरू होने का समय लगातार नजदीक आ रहा है। लेकिन कुंभ से संबंधित विकास कार्य अभी तक अधूरे हैं। उन्होंने कहा कि शहर की तमाम सड़कें गडढ्ों में तब्दील हो चुकी हैं। बरसात शुरू होने वाली है। यदि सड़कों की दशा नहीं सुधारी गयी तो गड्ढों में जलभराव होने से लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

पिछले कई वर्षो से डेंगू व मलेरिया के प्रकोप से लोगों को जूझना पड़ रहा है। डेंगू की रोकथाम के कोई प्रभावी उपाय सरकार अब तक नहीं कर पायी है। कोरोना के साथ साथ डेंगू मलेरिया जैसी बीमारियां फैलने की पूरी संभावनाएं बनी हुई हैं। मुख्य बाजारो, शाॅपिंग काॅम्पलेक्सों के मार्गो का बुरा हाल है। भूमिगत बिजली लाईन बिछाने का कार्य बेहद धीमी गति से चल रहा है। सड़कों के किनारे खुद पड़े हुए हैं। निर्माण सामग्री इधर उधर फैली हुई है।

जिससे सड़क पर चलने वालों के साथ व्यापारियों को भी भारी दिक्कतें झेलनी पड़ रही है। सड़कों में बड़े बड़े गडढ्े दुघर्टनाओं का कारण बने हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग के साथ साथ जिला प्रशासन कोरोना संक्रमण को लेकर जूझ रहा है। लेकिन शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक व हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार के विकास कार्यो में किसी भी प्रकार की कोई रूचि नहीं दिखा पा रहे हैं। मात्र अधिकारियों के साथ बैठक कर निर्देश देने के काम किए जा रहे हैं। धरातल पर विकास कार्य होते नजर नहीं आ रहे हैं। प्रतिवर्ष डेंगू के कारण कई मौतें हो जाती हैं। मानसून प्रारम्भ होने ही वाला है। लेकिन निर्माण कार्य अब तक नहीं हो पा रहे हैं।

कोरोना संक्रमण के बीच डेंगू फैलने से स्थिति बेहदखराब हो सकती है। सुनील अरोड़ा ने कहा कि इससे स्वास्थ्य विभाग के लिए दोहरी चुनोती खड़ी हो सकती है। इसको देखते हुए शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक व सांसद डा.निशंक को आगे आना चाहिए। जनता की पीड़ा को समझने की आवश्यकता है। मंत्री सांसद ही धर्मनगरी की जनता की समस्याओं का निदान नहीं करेंगे तो जनता चुनाव में उन्हें सबक सिखाने का काम करेगी। धर्मनगरी का उद्धार कब होगा। कई प्रश्न हरिद्वार वासियों के जहन में बने रहते हैं। विकास के दावे तो किए जा रहे हैं। लेकिन विकास कहीं होता नजर नहीं आ रहा है।


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