अमरीश
हरिद्वार, 19 जून। राष्ट्रीय परशुराम परिषद की ओर से हरिद्वार में भगवान श्री परशुराम के समग्र व्यक्तित्व, उनकी जन्मभूमि, उनकी कर्मभूमि व तपोभूमि आदि विषय को लेकर दो दिवसीय राष्ट्रीय विद्वत संत समागम का आयोजन अवधूत मण्डल आश्रम में किया जा रहा है। सम्मेलन में देश विदेश के जाने माने विद्वान, इतिहासकार, शिक्षाविद विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति भाग ले रहे हैं।
राष्ट्रीय परशुराम परिषद के संस्थापक संरक्षक पंडित सुनील भराला ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए बताया कि संगोष्ठी का उद्देश्य भगवान परशुराम के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करना है। हमेशा से एक दुष्प्रचार किया गया कि भगवान परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया। परंतु यह कदापि सत्य नहीं है। इसी प्रकार अनेक साहित्य भगवान परशुराम को अपनी माता का हत्यारा बताते हैं जो सर्वथा अनुचित मत है।
एक और जटिल प्रश्न भगवान परशुराम की जन्मस्थली को निर्धारित करना भी है। इन सभी प्रश्नों का उत्तर राष्ट्रीय संगोष्ठी में सभी को मिलेगा। सम्मेलन में विद्वानों और संतों के अतिरिक्त कई केंद्रीय मंत्री महामंडलेश्वर एवं शंकराचार्य शामिल हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम का व्यक्तित्व अत्यंत असाधारण हैं। भगवान विष्णु के छठ में अवतार के रूप में जन्म लेकर भगवान परशुराम ने मानव समाज के उत्थान और कल्याण के अनेक कार्य किए।
उन्होंने अपने प्रयोगों और अनुसंधान के द्वारा कई अस्त्रों शस्त्रों अविष्कार किया और युद्ध कला के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित किया। भगवान परशुराम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनका मंदिर अथवा तीर्थस्थल पूरे भारतवर्ष में मौजूद है। लद्दाख से कन्याकुमारी तथा गुजरात से अरुणाचल तक भगवान परशुराम से जुड़े तीर्थ स्थल लगभग सभी जगह हैं । इस दृष्टिकोण से भगवान परशुराम को भारत का सांस्कृतिक दूत कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।