संतोषी कभी दरिद्र नहीं होता-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

Haridwar News
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अमरीश


हरिद्वार, 7 मई। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में आर्यनगर ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस की कथा में भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि जिसके मन में संतोष होता है। वह कभी दरिद्र नहीं होता। ा दरिद्र वह होता है जिसके मन में कभी संतोष नहीं रहता। सुदामा परम संतोषी ब्राह्मण थे। हमेशा भगवान का धन्यवाद कहते थे। कृष्ण और सुदामा की मित्रता संदीपनी मुनि के आश्रम में विद्या अध्ययन के दौरान मित्रता हुई। विद्या अध्ययन के बाद दोनों अपने अपने घर चले गए। समय बलवान होता है कृष्ण द्वारिकापुरी के राजा द्वारिकाधीश बन गए। परंतु सुदामा अपनी पत्नी सुशीला एवं दो बच्चों के साथ झोपड़ी में निवास करते थे। ना खाने के लिए कुछ था। ना पहनने, ओढ़ने और बिछाने के लिए कुछ था।

परंतु भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते थे। हमेशा भगवान श्रीकृष्ण की मित्रता को याद करते एवं उनकी भक्ति किया करते थे। परंतु कभी भी श्रीकृष्ण से किसी भी चीज की याचना नहीं करते। एक बार पत्नी के कहने पर सुदामा एक पोटली में कृष्ण को देने के लिए दस मुट्ठी चावल लेकर श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिकापुरी पहुंचे। श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी में सुदामा का बहुत ही आदर सत्कार किया। श्रीकृष्ण जानते थे सुदामा उनसे कभी कुछ नहीं मांगेंगे। इसलिए श्रीकृष्ण ने सुदामा के लाए चावलों में से जब एक मुट्ठी चावल अपने मुख में डाला और सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए। दूसरी मुट्ठी में नीचे के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए। सुदामा जब द्वारिकापुरी से लौटकर अपने गांव पहुंचे। तब सुदामा को अपनी झोपड़ी की जगह महलों को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ।
शास्त्री ने बताया कि भगवान अपने भक्तों को अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। भगवान की भक्ति करने वाले पास किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को भगवान की भक्ति निष्काम भाव के साथ करनी चाहिए एवं मन में संतोष धारण करना चाहिए।
इस अवसर पर मुख्य यजमान चेतन स्वरूप गुप्ता, योगेश कुमार गुप्ता, दुर्गेश गुप्ता, लक्ष्मी गुप्ता, देव गुप्ता, दिव्यांशु गुप्ता, राकेश गुप्ता, प्रीति गुप्ता, मुदिता गुप्ता, गिरिराज गुप्ता, पद्मलता गुप्ता, मोहित गुप्ता, विमलेश गुप्ता, हेमलता रानी, रजनी गुप्ता सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल रहे।

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