धर्म के मार्ग पर चलने की भगवान स्वयं रक्षा करते हैं-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

Dharm
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अमरीश


राजा परीक्षित के जन्म की कथा सुनायी
हरिद्वार, 23 जून। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार के तत्वाधान में माता का डेरा ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने राजा परीक्षित के जन्म की कथा का श्रवण कराते हुए बताया कि द्रौपदी को जब समाचार मिला कि अश्वत्थामा ने उसके पाँचों पुत्रों की हत्या कर दी है तो वह अनशन पर बैठ गयी और कहा कि वह अनशन तभी तोड़ेगी, जब अश्वत्थामा के मस्तक पर सदैव बनी रहने वाली मणि उसे प्राप्त होगी। अर्जुन अश्वत्थामा को पकड़ने के लिए निकल पड़े। अश्वत्थामा ने पांडवों को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। कृष्ण ने कहा- “उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र अवश्य ही जन्म लेगा। नीच अश्वत्थामा यदि तेरे शस्त्र प्रयोग के कारण वह बालक मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवनदान दूँगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ तीन हजार वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा।

व्यास ने भी श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया। अर्जुन अश्वत्थामा को रस्सी में बांधकर द्रौपदी के पास ले आये। द्रौपदी ने दयार्द्र होकर उसे छोड़ने को कहा किंतु श्रीकृष्ण की प्रेरणा से अर्जुन ने उसके सिर से मणि निकालकर द्रौपदी को दी। उत्तरा के गर्भ में बालक ब्रह्मास्त्र के तेज से दग्ध होने लगा। तब श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश किया। उनका वह ज्योतिर्मय सूक्ष्म शरीर अँगूठे के आकार का था। वे चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुते थे। कानों में कुंडल तथा आँखें रक्तवर्ण थीं। हाथ में जलती हुई गदा लेकर उस गर्भ स्थित बालक के चारों ओर घुमाते थे। जिस प्रकार सूर्यदेव अन्धकार को हटा देते हैं। उसी प्रकार वह गदा अश्वत्थामा के छोड़े हुए ब्रह्मास्त्र की अग्नि को शांत करती थी। गर्भस्थित वह बालक उस ज्योतिर्मय शक्ति को अपने चारों ओर घूमते हुये देखता था। वह सोचने लगता कि यह कौन है और कहाँ से आया है। दस माह पश्चात् उस बालक का जन्म हुआ। बालक के जन्म का समाचार सुनकर श्रीकृष्ण तुरन्त ही सात्यकि को साथ लेकर अन्तःपुर पहुँचे। भगवान श्रीकृष्ण ने उस बालक का नाम ‘परीक्षित’ रखा। महाराज युधिष्ठिर ने जब पुत्र जन्म का समाचार सुना तो वे अति प्रसन्न हुए और उन्होंने असंख्य गाय, गाँव, हाथी, घोड़े, अन्न आदि ब्राह्मणों को दान दिये। उत्तम ज्योतिषियों को बुलाकर बालक के भविष्य के विषय में प्रश्न पूछे।

ज्योतिषियों ने बताया कि वह बालक अति प्रतापी, यशस्वी तथा इच्क्ष्वाकु समान प्रजापालक, दानी, धर्मी, पराक्रमी और भगवान श्रीकृष्णचन्द्र का भक्त होगा। एक ऋषि के शाप से तक्षक द्वारा मृत्यु से पहले संसार के माया मोह को त्यागकर गंगा के तट पर श्रीशुकदेव मुनि से आत्मज्ञान प्राप्त करेगा। धर्मराज युधिष्ठिर ज्योतिषियों के द्वारा बताये गये भविष्यफल को सुनकर प्रसन्न हुए और उन्हें यथोचित दक्षिणा देकर विदा किया। वह बालक शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा के समान दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। परीक्षित का राज्य अभिषेक कर पांडव स्वर्गारोहण के लिए चले गए और परीक्षित राज सिंहासन पर विराजमान होकर प्रजा का पालन करने लगे।

शास्त्री ने बताया कि धर्म के मार्ग पर चलने वाले एवं भगवान की शरण में रहने वाले की भगवान स्वयं रक्षा एवं सहायता करते हैं। इसलिए सभी को अपने जीवन में धर्म के मार्ग पर ही चलना चाहिए। इस अवसर पर मुख्य यजमान कमलेश मदान, नरेश मनचंदा, राजू मनचंदा, राकेश नागपाल, मुकेश चावला, अमित गेरा, संजय सचदेवा, दीपक बजाज, नीरू, रीना, भावना, लक्की, कविता, मंजू, कमल, कनिका, सुषमा, कविता, रेणु, आशा, जिज्ञांशा, ऋषभ, आयुषा, ललिता गेरा, बाला शर्मा, दर्शना छाबरा, आचार्य महेशचंद्र जोशी, पंडित रामचंद्र तिवारी, पंडित गणेश कोठारी आदि श्रद्धालु मौजूद रहे।

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