भगवान की आत्मा है गोपाी गीत-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 23 जनवरी। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में विकास कॉलोनी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के षष्टम दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने गोपीकाओं एवं भगवान श्रीकृष्ण के मिलन की लीला महारास लीला का श्रवण कराते हुए बताया कि प्रत्येक युग में भगवान के भक्त भगवान को पाने के लिए उनका पूजन करते हैं। भक्तों का मनोरथ पूर्ण करने के लिए भगवान गोलोक धाम से वृंदावन धाम को इस पृथ्वी पर भेज कर स्वयं कृष्ण बनकर आते हैं और भक्त गोपी बनकर वृंदावन धाम आते हैं।

वेद पुराणों के श्लोक भी गोपी बनकर वृंदावन पहुंच जाते हैं। भगवान ने सभी का मनोरथ पूर्ण करने के लिए शरद कालीन पूर्णिमा की रात्रि का निर्माण किया है। इस रात्रि को दिव्य बनाने के लिए योग माया ने सुंदर-सुंदर पुष्पों की सुगंधी से वृंदावन को सुगंधित कर दिया है। दिव्य रात्रि में भगवान ने सुंदर वंशिका वादन किया। जिस भी गोपी के कान में भगवान की बंसी की धुन सुनाई दी। वह श्रीकृष्ण से मिलने के लिए वृंदावन पहुंच गई। श्रीकृष्ण की बंसी की धुन पर नृत्य करने लगी। देखते ही देखते श्रीकृष्ण अदृश्य हो गए। गोपिकाएं पूरे वृंदावन में कृष्ण को ढूंढने लगी। परंतु उनका दर्शन नहीं हो पाया।

तब गोपीकाओं ने मिलकर जमुना के तट पर सुंदर गोपी गीत गाया। गोपी गीत को सुनकर भगवान प्रसन्न हुए और गोपीकाओं को दर्शन दिए। शास्त्री ने बताया श्रीमद्भागवत भगवान श्रीकृष्ण का श्रीविग्रह है और रास पंचाध्याई भगवान के प्राण हैं तथा भागवत में जो गोपी गीत है, वह भगवान की आत्मा है। जो भक्त सच्ची श्रद्धा और विश्वास के साथ नित्य गोपी गीत का पाठ करता है। भगवान श्रीकृष्ण उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर देते हैं।

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