भगवान श्रीकृष्ण को माखन चोर या चीर चोर कहना उचित नहीं-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 13 अगस्त। केसरी मरहम के निर्माता बी.सी.हासाराम एंड संस द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के पंचम दिवस पर श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के संस्थापक भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का श्रवण कराते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को माखन चोर या चीर चोर कहना उचित नहीं है। शास्त्री ने बताया बृजवासी मथुरा जाकर दूध, दही, मक्खन बेचकर देते थे और बृजवासी बालकों को दूध दही मक्खन नहीं मिल पाता था।

जिसके कारण बृजवासी बालक बहुत ही ज्यादा दुबले-पतले कमजोर हो गए थे और मथुरा में कंस एवं कंस के जितने भी साथी राक्षस थे सब दूध दही मक्खन खाकर पहलवान हो रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण ने योजना बनायी कि कैसे राक्षसों का बल कम हो और बृजवासी बालकों का बल ज्यादा हो। इसलिए श्री कृष्ण ने सोचा कि इसका एक ही उपाय है कि गोपिकाओ के घरों में जा जाकर बृजवासी बालकों को दूध दही माखन खिलाया जाय। जिससे बालकों का बल बढ़े और राक्षसों का बल घटे और एक-एक करके अघासुर, बकासुर, कंस ऐसे अनेकों राक्षसों का संहार किया। शास्त्री ने बताया कि इसी प्रकार से भगवान ने गोपियों के संग चीर हरण लीला की।

इसके पीछे उनका प्रयोजन यह था की गोपिकाएं जमुना में स्नान किया करती थी तो कंस के राक्षस गोपीकाओ को छुप छुप कर देखते थे और उनके साथ अभद्र व्यवहार करते थे। चीरहरण के माध्यम से कन्हैया ने सभी को शिक्षा दी कि स्नान करते समय, दान देते समय, सोते समय, चलते फिरते समय बिना वस्त्रों के नहीं रहना है। श्रीकृष्ण ने जिस समय पर गोपियों के संग चीर हरण लीला की उस समय पर कृष्ण की अवस्था 6 वर्ष की थी। 6 वर्ष का बालक किसी के वस्त्र चुरा कर क्या करेगा। शास्त्री ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने जितनी भी लीलाएं की उन सब के पीछे कुछ न कुछ रहस्य छुपा हुआ है। मुख्य जजमान किरण चंदनानी, राधा कृष्ण चंदनानी, ग्रीष्मा चंदनानी, पंडित गणेश कोठारी, पंडित जगदीश प्रसाद कंदूरी, पंडित विष्णु शर्मा, यशोदा प्रसाद आदि ने पूजन संपन्न किया।

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