कर्मो के अनुसार ही फल भोगता है मुनष्य-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 2 अक्तूबर। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में गोकुलधाम कॉलोनी ज्वालापुर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि मनुष्य अपने कर्मों के फलस्वरूप ही स्वर्ग एवं नरक भोगता है। कर्म तीन प्रकार के होते हैं। संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म एवं क्रियमाण कर्म। संचित कर्म वह होता है जो कर्म करने के बाद इकट्ठा हो जाता है। संचित कर्म बीज की तरह पड़ा रहता है और समय आने पर फल देता है। जो फल हम सुख एवं दुख के रूप में भोग रहे हैं।

उसे प्रारब्ध कर्म कहा जाता है तथा जो वर्तमान समय पर हम कर रहे हैं उसे क्रियमाण कर्म कहा जाता है। क्रियमाण कर्म ही आगे चलकर भाग्य बनता है। शास्त्री ने बताया कि भीष्म पितामह जब बाणों की शैया पर पड़े हुए थे। तब भगवान श्रीकृष्ण से उन्होंने पूछा मुझे अपने सौ जन्मों का स्मरण है। मैंने कोई भी पाप कर्म नहीं किया। फिर मुझे यह बाणों की शैया क्यों मिली। तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भीष्म पितामाह आपको सौ जन्मों का स्मरण है। परंतु उससे पूर्व जन्म का आपको स्मरण नहीं है। उससे पूर्व आपने एक टीट्ठी नामक कीड़े को कांटा लगा कर झाड़ियों में कांटों में फेंक दिया था। उसी के परिणामस्वरूप आज आपको बाणों की शैया प्राप्त हो रही है। यह आपका संचित कर्म है जो प्रारब्ध के रूप में आज आपको भोगना पड़ रहा है।

मनुष्य के किए गए कर्म बिना फल दिए बिना भोगे कभी समाप्त नहीं होते हैं। मनुष्य यदि दुख भोग रहा है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पाप कर्म नष्ट हो रहा है। यदि मनुष्य सुख भोगता है तो समझ लेना चाहिए कि उसका पुण्य कर्म समाप्त हो रहा है। सुख एवं दुख पाप कर्म एवं पुण्य कर्म के द्वारा ही मनुष्य को प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को सदा पुण्य कर्म करने चाहिए। इस अवसर पर मुख्य जजमान वीणा धवन, अंशुल धवन, सागर धवन, लक्ष्य धवन, ज्योति मदन, कनिषा मदन, कृष्ण गाबा, रेखा गाबा, पारुल, पूनम, दिनेश गोयल, अरुण मेहता, मालिका मेहता, मीनू सचदेवा, संजय सचदेवा आदि सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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