तनवीर
हरिद्वार, 10 मई। मस्जिद ए अली के इमाम मु्फ्ती शाहनवाज अमजदी ने कहा कि रोजा सब्र का पैगाम है। रमजान के महीने में रोजे का दर्जा दूसरे सब रोजों से ज्यादा है। रमजान के पाक महीने में रोजा फर्ज है। रोजा इस मुबाकर महीने की अहम इबादत है। जिसमें इंसान खाना-पीना और अपनी हर नफसीयाती ख्वाहिश को तर्क कर देता है। सिर्फ अल्लाह की रजा के लिए रमजान का रोजा बदनी इबादत, फर्ज अहकाम में से है और शरीयत का ये एक बड़ा अहम रूकन है। बिला उजरे शरई के रोजाछोड़ने वाला सख्त गुनाहगार और फासिक है।
रमजान के रोजे सन् 2 हिजरी में फर्ज हुए। इससे पहले आशुरा का रोजा फर्ज था यानि 10 मुहर्रम। जब ये रमजान के रोजों के फर्ज का हुक्म आया उसके बाद आशुरे की रोजे के फर्ज का हुक्म खत्म हो गया। इस माहे मुबारक में मोमिनो का रिज्क बढ़ा दिया जाता है और हर नेकी का सवाब सत्तर गुना दिया जाता है। रब का फरमान है कि हर नेकी का बदला 10 गुना से सात सौ गुना तक हो जाता है और रोजा खास मेरे लिए है और मै ही इसका बदला दूंगा।
यही वजह है कि रोजा इंसान के अंदर अखलाक व किरदान की बुलंदी पैदा करता है। रोजे से सब्र का जज्बा इन्सान के अंदर पैदा होता है। रोजे से इंसान के अंदर भाईचारे का अहसास पैदा होता है। इसलिए हमें अपने गुनाहों से तोबा करनी चाहिए और इबादत में मशगूल रहना चाहिए। जबकि रमजान मुबारक के जुमे सभी मस्जिद में निहायत ही फरहतों सादमानी के रिवायती इख्लाक और किरदार भाईचारे के साथ अदा की जाती थी। लेकिन इस बार वैश्विक कोरोना महामारी के मद्देनजर पूरा मुल्क बंद है और हुकूमती हिदायत की वजह से 5 अफराद ही बाज्मात नमाज अदा कर रहे हैं।
इस वजह से मस्जिदों से जो एक अहम खुशी का पैगाम मिलता था। अब वो नहीं मिल पा रहा हे। सभी मस्जिदें खाली हैं। रोजेदार अपने घरों में ही नमाज व दीगर इबादत करते हैं। हम सभी दुआ करें कि अल्लाह पाक इस माह मुबारक के सदके पूरी दुनिया से महामारी को दूर फरमाएं और पूरी आदम की आदमियत की हिफाजत फरमाए। इस माह मुबारक के वैसे तो बेशुमार फजाइल है। इस माहे मुबारक में अल्लाह पाक की खास रहमते नाजिल होती है और रोजाना वक्ते इफ्तार बेशुमार गुनाहगारों की मगफीरत होती है।