कौशिक की चुनावी रणनीति के चलते चित्त हुई कांग्रेस

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तनवीर


हरिद्वार, 12 मार्च। हरिद्वार विधानसभा के संपन्न हुए 2022 के चुनाव में अभी तक परिणाम को लेकर जो कयास लगाए जा रहे थे। उसमें कई बड़े राजनीतिक पंडितों का पूर्वानुमान ध्वस्त होता दिखाई दिया और कांग्रेस का 20 सालों का वनवास समाप्त नहीं हो पाया। एक ओर जहां जीत हार का अंतर बहुत नजदीकी बताया जा रहा था, कांटे की टक्कर बताई जा रही थी।

वहीं भीतरघात और 20 साल की एंटी इनकंबेंसी और नशे जैसे मुद्दे को आधार बनाकर मदन कौशिक की सीट को खतरे में बताया जा रहा था। कुछ राजनीतिक दल नशे को भी प्रमुख मुद्दा बना रहे थे। जिसे जनता ने पूरी तरह नकार दिया। कुछ पुराने परंपरागत मदन विरोधी लोग भी इस बार उनके पिछड़ने को लेकर बहुत आश्वस्त थे और कांग्रेस की जीत को लेकर पूर्ण आश्वस्त थे।

हालांकि सूत्रों से जानकारी मिली है कि भाजपा की विचार परिवार के कनखल की उस टोली के कुछ प्रमुख युवाओ को संघ से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है और कनखल निवासी अर्पित अग्रवाल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कनखल का नया मंडल कार्यवाह बनाया गया है। कौशिक के कुशल चुनावी प्रबंधन और उनके बूथ और ब्लॉक मैनेजमेंट ने उन सारी धारणाओं को न केवल ध्वस्त किया। बल्कि 15 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करके एक बार फिर अपने कुशल चुनावी प्रबंधन का लोहा मनवाया।

कौशिक के जितने कार्यकर्ता मुख्य रूप से चुनावी मैदान में दिखते थे। उससे कहीं ज्यादा कार्यकर्ता पर्दे के पीछे उनके व्यक्तिगत चुनाव प्रबंधन में लगे हुए थे और यही कारण है कि कई लोग आज भी इस परिणाम पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।

राजनैतिक रूप से उनके मुख्य रणनीतिकार भाजपा जिला महामंत्री और मुख्य चुनाव अभिकर्ता विकास तिवारी जहां पूरे चुनाव में मोर्चा संभाले रहे। चाहे कांग्रेस पर पत्रकार वार्ता के माध्यम से आक्रमण करना हो या कांग्रेस के उदासीन मुद्दों का जवाब देना हो तिवारी हमेशा कांग्रेस पर आक्रामक रहे और चुनाव में पूरी तरह योद्धा की तरह डटे रहे। वही उनके छोटे भाई और विधायक प्रतिनिधि मुकेश कौशिक पूरे चुनाव प्रबंधन को पर्दे के पीछे धरातल पर उतारते हुए दिखाई दिए।

वही चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष सुभाष चंद्र, मुख्य चुनाव संयोजक अनिल, विधानसभा चुनाव प्रभारी नरेश धीमान, विस्तारक नवीन झा, कार्यालय प्रभारी संजय अग्रवाल और उनके पुत्र आयुष कौशिक की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
वहीं भीतरघात और 20 साल की एंटी इनकंबेंसी को आधार बनाकर मदन कौशिक की सीट को खतरे में बताया जा रहा था। लेकिन कौशिक के कुशल चुनावी प्रबंधन और उनके बूथ और ब्लॉक मैनेजमेंट ने उन सारी धारणाओं को न केवल ध्वस्त किया। बल्कि 15 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करके एक बार फिर अपने कुशल प्रबंधन का लोहा मनवाया।

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