कृषि भूमि के संबंध में केंद्र द्वारा राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण-अम्बरीष कुमार

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तनवीर

हरिद्वार, 4 जुलाई। पूर्व विधायक अम्बरीष कुमार ने कहा कि संविधान की 7वीं अनुसूची में वर्णित राज्य का अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत बिंदु नंबर 14 और 18 कृषि और कृषि भूमि के अधिकारों को स्पष्ट करते है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ के पैकेज के अंतर्गत कृषि सुधारों की घोषणा की गई थी। इसमें कृषि उत्पादों के मार्केटिंग की व्यवस्था में भी परिवर्तन किया गया है। जिसके अंतर्गत उत्पादक के पास अपने उत्पाद को भारत के किसी भी हिस्से में किसी को भी बेचने का अधिकार होगा तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम की परिधि से खाद्यान्नों को बाहर करने के साथ-साथ स्टॉक सीमा भी समाप्त कर दी गई है।

अम्बरीष कुमार ने कहा कि यह व्यवहारिक नहीं है और किसान विरोधी कदम है। यह व्यवसायियों के हित में है किसानों के नहीं। फसल के समय व्यवसायी किसान से उत्पाद खरीद कर भारी मात्रा में स्टॉक कर लेंगे और बाद में मनमाने दामों पर उसका विक्रय करेंगे जिसका लाभ किसान को नहीं मिलेगा। इसी प्रकार ठेके पर खेती के लिए ठेकेदार से अनुबंध करना होगा। फसल का मूल्य ठेके के समय पर ही निर्धारित हो जाएंगे। परिणाम यह होगा कि यदि भविष्य में फसल का दाम अधिक हुआ तो किसानों को घाटा और यदि भाव कम हो गया तो ठेकेदार ठेके के प्राविधानों का दुरुपयोग कर विवाद पैदा करेगा। खाद्यान्नों के अतिरिक्त फल, सब्जी, गन्ने जैसी फसलों का क्या होगा। इन दोनों के लिए केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश जारी कर राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण किया गया। तीसरा अध्यादेश कृषि भूमि को लीज पर दिए जाने के संबंध में जारी करने की दिशा में सरकार प्रयासरत है।

इससे किसानों की भूमि सदा सदा के लिए चली जाएगी। यह सारे सुधार शांता कुमार समिति के सिफारिशों के आधार पर किए गए हैं। इन सिफारिशों के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली समाप्त करने और भारतीय खाद्यान्न निगम का अस्तित्व भी समाप्त करने को कहा गया। इसी प्रकार केंद्र सरकार ने देश की सभी सहकारी बैंकों को केंद्र के नियंत्रण में लेकर राज्यों के अधिकार छीने है। यह सरकार किसान मजदूर विरोधी सरकार है।

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