अमरीश
हरिद्वार, 15 मार्च। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट के तत्वाधान में रामनगर कालोनी स्थित हनुमान मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने उत्तराखंड में मनाए जाने वाले लोक पर्व फुलदेई के बारे में बताते हुए कहा कि जब माता पार्वती की ससुराल के लिए विदाई हो रही थी। तब वे तिल-चावलों से देहली भेंट रही थी, तो उनकी सहेलियों ने रुआंसी होते हुए कहा कि पार्वती तुम तो यहां से विदा हो रही हो अब हम तुम्हें किस तरह याद करेंगे। तुम अपनी कुछ निशानी यहां छोड़ दो। तब माता पार्वती प्रसन्न मुद्रा में खिलखिलाते हुए तिल-चावलों से देहली भेटने लगी तो उनकी खिलखिलाहट से वे तिल-चावल पीले-पीले फूलों में परिवर्तित हो गये और उनका नाम प्यूली के फूल रखा गया।
माता ने सहेलियों से कहा कि प्रिय सखियों जब भी तुम इन पीले फूलों को देहली पर विखेरोगी तो इन फूलों में तुम्हें मेरा प्रतिबिंब दिखाई देगा। तभी से चैत्र मास की सक्रांति को फुलदेई का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि यह केवल देहली की पूजा नहीं बल्कि माता पार्वती की पूजा है। माता पार्वती की कृपा से उत्तराखंड के खेत, खलिहान, गांव, कस्बे, बाजार प्यूली के फूलों से महकता रहता है। मुख्य यजमान चिराग अरोड़ा, रेनू अरोड़ा, कमलेश अरोड़ा, राजकुमार अरोड़ा, रीना जोशी, पंकज जोशी, वंदना अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा, नीलम अरोड़ा, पंडित गणेश कोठारी, पंडित मोहन जोशी आदि ने भागवत पूजन कर कथा व्यास से आशीर्वाद लिया।