संतोषी कभी दरिद्र नहीं होता-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 9 नवम्बर। विल्केश्वर कालोनी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सप्तम दिवस पर सुदामा चरित्र की कथा सुनाते हुए भागवताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि संतोषी कभी दरिद्र नहीं होता। सुदामा परम संतोषी ब्राह्मण थे। हमेशा भगवान का धन्यवाद कहते थे। बाल्यकाल में संदीपनी मुनि के आश्रम में विद्या अध्ययन के दौरान सुदामा और कृष्ण मित्र बने। विद्या अध्ययन के बाद दोनों अपने अपने घर। समय बीतने पर कृष्ण द्वारिकापुरी के राजा द्वारिकाधीश बन गए। परंतु सुदामा की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। सुदामा अपनी पत्नी सुशीला एवं दो बच्चों के साथ झोपड़ी में निवास करते थे।

स्थिति इस प्रकार की थी कि उनके पास खाने पहनने के लिए भी कुछ नहीं था। परंतु भगवान से कभी कुछ नहीं मांगते थे। हमेशा भगवान श्रीकृष्ण की मित्रता को याद करते एवं उनकी भक्ति किया करते थे। एक बार पत्नी के कहने पर सुदामा एक पोटली में कृष्ण को देने के लिए दस मुट्ठी चावल लेकर उनसे मिलने के लिए द्वारिकापुरी पहुंचे। श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी में सुदामा का बहुत आदर सत्कार किया। श्रीकृष्ण जानते थे कि सुदामा मुझसे कभी कुछ नहीं मांगेंगे।

इसलिए श्रीकृष्ण ने सुदामा के लाए चावलों में से जब एक मुट्ठी चावल अपने मुख में डाला और ऊपर के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए और दूसरी मुट्ठी में नीचे के सातों लोक सुदामा के नाम कर दिए। सुदामा जब द्वारिकापुरी से लौट कर अपने गांव पहुंचे तो अपनी झोंपड़ी की जगह महल देखकर उनके मूंह से बरबस निकल पड़ा फैलाई जिसने झोली तेरे दरबार में आकर एक बार, तुझे देता नहीं देखा मगर झोली भरी देखी।
शास्त्री ने बताया कि भगवान अपने भक्तों को अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। भगवान की भक्ति करने वालों पर किसी भी चीज की कमी नहीं रहती। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को भगवान की भक्ति निष्काम भाव के साथ करनी चाहिए और मन में संतोष धारण करना चाहिए। इस अवसर पर मुख्य जजमान एकता सूरी, सुरेश कुमार सूरी, पीयूष सूरी, दीपक सूरी, ज्योति सूरी, तनिष्का सूरी, रेशम सूरी, दिनेश सूरी, हर्ष सूरी, राहुल सूरी, सोनिया सूरी, भजनलाल सूरी के साथ कथा में शामिल सभी श्रद्धालुओं ने भागवत पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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