तनवीर
सरकारी विद्यालयों के अध्यापक छोड़ें तीन माह का वेतन-डा.गोपाल सिंह विरमानी
हरिद्वार, 29 मई। देवभूमि विद्यालय प्रबंधक समिति ने लाॅकडाउन के दौरान विद्यालयों से आए दिन भिन्न भिन्न सूचना मांगने पर गहरी आपत्ति व्यक्त की है। संस्था के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम कपिल व प्रदेश के महासचिव डा.गोपाल सिंह विरमानी ने कहा कि एक तरफ शासन तीन माह की फीस न लेने के तुगलगी आदेश जारी कर रहा है। वहीं दूसरी ओर विद्यालयों को आॅनलाइन शिक्षा जारी रखने पर अभिभावकों को फीस देने के लिए भी कह रहा है। शासन के द्विमुखी आदेशों से अभिभावकों व विद्यालयों में परस्पर सम्बंधों में गहरी खाई खोदने का काम शासन द्वारा किया जा रहा है।
डा.विरमानी ने कहा कि आॅन लाइन शिक्षा को सरकारी स्कूलों में लागू न किया जाना व प्राइवेट स्कूलों से इस प्रकार की शिक्षा दिए जाने की प्रतिदिन सूचना मांगना किसी भी स्थिति में न्यायोचित नहीं है। जबकि विभाग के आदेशानुसार ही विद्यालय तीन माह से बंद पड़े हैं। लाॅकडाउन में अधिकांश अभिभावकों के रोजगार छूट गए हैं। घर में एक छोटा साधारण मोबाईल है। परिवार के यदि चार बच्चे हैं तो महंगे मोबाईल कहां से लाएंगे। इंटरनेट की भी सुविधा नहीं है तथा कुछ के पास तो मोबाईल व लैपटाॅप भी नहीं है। स्कूली बच्चों के माता पिता का रोजगार भी नहीं है। ऐसी स्थिति में आॅनलाइन शिक्षा पद्धति प्रत्येक वर्ग के लिए संभव नहीं है। डा.गोपाल सिंह विरमानी ने कहा कि निजी स्कूलों को सरकार लगातार तरह तरह के प्रतिबंध लगा रही है। लेकिन सरकार सरकारी स्कूलों पर नियमों का कोई पालन नहीं करा पाती है। उन्होंने कहा कि कई निजी स्कूल किराए के भवन में संचालित हैं।
अध्यापकों का वेतन भी देना पड़ता है। ऐसे में निजी स्कूल प्रबंधक मानसिक व आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं। राज्य सरकार को तत्काल पांच लाख की आर्थिक मदद निजी स्कूल प्रबंधकों को देनी चाहिए। गोपाल सिंह विरमानी ने यह भी मांग की कि निजी स्कूल प्रबंधक बच्चों से फीस नहीं लेंगे। उसी तर्ज पर सरकारी स्कूल के अध्यापक तीन माह का वेतन ना लें। वह भी कोरोना संकट में अपना योगदान सरकार को दें। इसके अलावा सरकार बच्चों को लेपटाॅप व मोबाइल भी उपलब्ध कराए जिससे शिक्षा का कार्य समान रूप से चल सके।
विद्यालय प्रबंधक समिति के प्रांतीय संगठन सचिव रामगोपाल गुप्ता ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि लाॅकडाउन की अवधि में निजी स्कूल भवनों व बिजली पानी के बिलों को माफ किया जाए। वित्तीय सहायता के तौर पर पांच लाख रूपए की घोषणा भी की जानी चाहिए। विद्यालयों में नियमित वित्तीय खर्चे अनेकों होते हैं। बिजली, पानी, स्टाफ का वेतन, किराया, वाहनों की ईएमआई आदि में सरकार द्वारा कोई छूट ना दिया जाना सरकार की मंशा को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में दोहरी नीति किसी भी प्रकार बर्दाश्त नहीं की जाएगी।