गौरव रसिक
हरिद्वार, 5 अप्रैल। महामण्डलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद सरस्वती महाराज ने कहा है कि सनातन धर्म की वाहक संत परंपरा भारत देश को महान बनाती है और महापुरुषों ने सदैव ही समाज का मार्गदर्शन कर नई दिशा प्रदान की है। भूपतवाला स्थित शाश्वतम् आश्रम में ब्रह्मलीन श्रीमहंत हरिहरानंद सरस्वती महाराज की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा एवं पुण्यतिथि पर आयोजित संत सम्मेलन को संबोधित करते हुए महामंडलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि महापुरुषों का जीवन सदैव ही परोपकार को समर्पित रहता है और ब्रह्मलीन श्रीमहंत हरिहरानंद सरस्वती महाराज एक दिव्य महापुरुष थे।
जिन्होंने संपूर्ण जीवन सनातन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित किया। उन्होंने युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर सदैव ही भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार में अपना योगदान प्रदान किया। राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमहंत विद्यानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि महापुरुष केवल शरीर त्यागते हैं। समाज कल्याण के लिए उनकी आत्मा सदैव विद्यमान रहती है। ब्रह्मलीन श्रीमहंत हरिहरानंद सरस्वती महाराज त्याग और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने समाज को सेवा का संदेश देकर गंगा तट से मानव सेवा के कई सेवा प्रकल्प प्रारंभ किए।
समाज कल्याण में उनका अतुल्य योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। श्रीपंच अग्नि अखाड़े के कुंभ मेला प्रभारी श्रीमहंत साधनानंद महाराज ने कहा कि संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है। जो सदैव अपने भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ब्रह्मलीन श्रीमहंत हरिहरानंद सरस्वती महाराज एक विद्वान महापुरुष थे। जिन्होंने भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के प्रचार प्रसार में अपना पूरा जीवन समर्पित किया। युवा संतो को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर धर्म की रक्षा के लिए आगे आना चाहिए। स्वामी विश्वेश्वरानन्द, महंत महेश्वरानन्द, स्वामी सर्वेश्वरानंद, म.म.स्वामी प्रेमानंद गिरी, म.म.स्वामी विवेकानंद सरस्वती, म.म.स्वामी रघुवंश पुरी, महंत रविन्द्रानंद सरस्वती, महंत कमलानंद, स्वामी ऋषिश्वरानंद, महंत स्वामी शिवयोगी सहित बड़ी संख्या में संत महापुरूष मौजूद रहे।