होलीका वैर और उत्पीड़न, प्रह्लाद प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक-पंडित पवन कृष्ण शास्त्री

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अमरीश


हरिद्वार, 5 मार्च। श्री राधा रसिक बिहारी भागवत परिवार सेवा ट्रस्ट द्वारा श्री राधा रसिक बिहारी मंदिर रामनगर कॉलोनी में आयोजित प्रवचन के दौरान भागवतताचार्य पंडित पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया कि होली पर्व को लेकर अनेक कथाएं पुराणों में मिलती हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर अपने बल के अहंकार पर स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर भी पाबंदी लगा दी थी।

हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रोधित होकर हिरणकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरणकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरणकश्यपक ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद अक्षुण्ण रहता है। शास्त्री ने बताया कि मुर्हत के अनुसार ढुंढा नामक राक्षसी का पूजन कर ओम् होलिकायै नमःकहते हुये विधान पूर्वक होलिका दहन करना चाहिए।

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