विडियो :-भाजपा नेता डा.सुब्रमण्यम स्वामी ने सचिवालय के कर्मचारियों की बर्खास्तगी को बताया अन्याय

Haridwar News
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तनवीर


हरिद्वार, 26 फरवरी। उत्तराखंड विधानसभा से बर्खास्त किए गए कर्मचारियों की लड़ाई अब पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री और सीनियर एडवोकेट सुब्रमण्यम स्वामी लड़ेंगे। हरिद्वार पहुंचे सुब्रमण्यम स्वामी ने बर्खास्त कर्मचारियों के साथ अटल बिहारी वाजपेयी राज्य अतिथी गृह में पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि सरकार 228 कर्मचारियों की बर्खास्तगी को वापस ले नहीं तो वे मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। इतना ही नहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि कर्मचारियों को बर्खास्त कर सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है। जोकि असंवैधानिक भी है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों की जीत निश्चित है।

हरिद्वार पहुंचे सुब्रमण्यम स्वामी ने हरिद्वार में बनने जा रहे हर की पैड़ी कॉरिडोर को भी गलत ठहराया और कहा कि देवभूमि का स्वरूप बना रहना चाहिए। भाजपा नेता एवं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पूर्व कानून मंत्री डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि वे उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त हुए 228 कार्मिकों की पैरवी करने आए हैं। सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि बर्खास्त किए गए कार्मिकों के साथ हुए अन्याय को आम जनता के समक्ष रखेंगे। उन्होंने कहा कि यह बड़ा आश्चर्य का विषय है कि एक ही संस्थान में एक ही प्रक्रिया से नियुक्ति पाए कार्मिकों की वैधता दो अलग-अलग निर्णय मैं कैसे वैध या अवैध हो सकती है।

उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी की कार्यवाही किसी भी दृष्टि से उचित नहीं लगती। जिसमें एक विधान व एक संविधान का उल्लंघन हुआ है। डा.स्वामी ने कहा कि यह कहां का न्याय है कि वर्ष 2001 से 2015 की नियुक्तियों को संरक्षण दिया जाए। वहीं वर्ष 2016 से 2022 तक के कार्मिकों को 7 वर्ष की सेवा के उपरांत एक पक्षीय कार्रवाई कर बर्खास्त किया गया है। उन्होंने कहा कि बिना कोई कारण बताए, बिना शो कॉज नोटिस दिए, बिना सुनवाई के कर्मचारियों को बर्खास्त कर देना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की मूल भावना के विपरीत है।

उन्होंने कहा कि पूर्व में भी उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बर्खास्त कार्मिकों की बहाली के लिए अनुरोध किया था। हरिद्वार में कॉरिडोर बनाने का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि इन कार्यों से सुंदरता प्रभावित होगी और ना ही इसकी कोई आवश्यकता है। मुख्यमंत्री को इस पर रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि वह मंदिरों के राष्ट्रीयकरण के विरुद्ध हैं और पूर्व में भी वह इसके विरुद्ध कोर्ट में गए थे और सरकार ने फैसला वापस लिया था।

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