तनवीर
हरिद्वार, 20 सितम्बर। पूर्व विधायक अंबरीष कुमार ने संसद में पारित कृषि विधेयकों को किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कॉरपोरेट के दबाव में कृषि क्षेत्र की नीतियों का निधारण करने पर आमदा है। किसान सशक्तिकरण संरक्षण और मूल्य आश्वासन एग्रीमेंट के जरिए सरकार कृषि क्षेत्र में ठेका प्रथा लागू करना चाहती है। जिससे जमीन धीरे-धीरे किसानों से छीन जाएगी। आवश्यक वस्तु अधिनियम की परिधि से तथा स्टाॅक करने की सीमा समाप्त कर जमाखोरी को बढ़ावा देना चाहती है। इसी प्रकार तीसरे बिल के जरिए मंडी समितियों को अथवा कृषि उत्पादन मार्केटिंग को समाप्त कर कॉरपोरेट्स के हाथों में सौंप देना चाहती है।
इसका प्रभाव यह होगा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रणाली समाप्त होने के साथ-साथ खाद्यान्नों की सरकारी खरीद भी बंद हो जाएगी। इस सब के कारण गरीब मध्यमवर्ग बुरी तरह प्रभावित होंगे और जमाखोरी कर कारपोरेट कंपनियां महंगे मूल्य पर खाद्यान्न बचेगी। इस प्रणाली से धीरे-धीरे सस्ते सरकारी गल्ले की व्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव होगा। क्योंकि यदि भारतीय खाद्य निगम के पास अन्न का भंडार ही नहीं होगा जो कि राज्यों की मंडी समितियों के द्वारा ही भारतीय खाद्य निगम खाद्यान्न प्राप्त करता है।
यह इस बात से सिद्ध होता है कि कोरोना संक्रमण विपत्ति के समय भी गरीब को अनाज देने की समस्या इसलिए उत्पन्न नहीं हुई कि गोदाम अनाज से भरे हुए थे। इसी व्यवस्था के चलते स्वतंत्रता के पश्चात भारत में कभी भी अकाल नहीं पड़ा। भारत गांव का देश है, गांव का मतलब है खेत किसान और मजदूर। यदि यही मिट जाएंगे और इनके स्थान पर कॉरपोरेट बैठ जाएंगे तो भारत का क्या होगा।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किसान को सामंती और जमीदारी प्रथा के कारण शोषण का शिकार होना पड़ता था और अब आजाद भारत में केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों का भी हनन करके कॉर्पोरेट घरानों की जमीदारी कायम करना चाहती है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने किसानों, व्यापारियों का धन्यवाद करते हुए कहा कि सबने एक तानाशाह के खिलाफ संघर्ष का रास्ता चुना। गांव और शहर का संबंध अटूट है। सभी मिलकर इस आंदोलन का समर्थन करें।